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________________ सद्यायमाला. कृतस्यो रे, जिम हिज गेवर चंग॥श्छे तिम जे धर्मने रे, तेहिज बीजू लिं गरे।। प्राणी ॥ १३ ॥ वैयावञ्च गुरुदेव रे, त्रीजुं लिंग नदार ॥ विद्या साधक तणि परें रे, आलस नविय लगार रे ॥ प्राणी ॥१४॥ ढाल ॥ प्रथम गोवालातणे नवेजी.॥ ए देशी ॥ अरिहंत ते जिनं विचरता जी॥ कर्म खपी हुआ सि॥चेश्य जिण पडिमा कही जी, सूत्र सिांत प्रसि ६॥ चतुर नर समको विनय प्रकार, जिम लहिये समकित सार ॥चतुरण ॥ १५ ॥ धर्म खिमादिक नाखिन जी, साधु तेहना रे गेह ॥ आचारय आ चारना जी, दायक नायक जेह ॥ चतुर॥ १६॥ नपाध्याय ते शिष्यने जी, सूत्र नणावणदार ॥ प्रवचन संघ वखाणियें जी, दरिसण समकित सार ॥ चतुर ॥ १७ ॥ नगति बाह्य प्रतिपत्तिथी जी, हृदय प्रेम बहुमा न । गुण श्रुति अवगुण ढांकवा जी, आशातननी हाण ॥॥ चतुरणा १७ ॥ पांच नेद ए दशतणो जी, विनय करे अनुकूल ॥ सीचे तेह सुधारसें जी, धर्म वृदनूं मूल ॥ चतुर॥ १५ ॥ ढाल ॥ धोबीडा तूं धोए मनहूँ धोतीयूं रे।। ए देशी ॥त्रण शुदि समकीततणी रे, तिहां पहिली मन शुहिरे ॥ श्री जिनने जिनमत विना रे, जूठ सकल ए बुहिरे ॥ चतुर विचारो चित्तमां रे ।। ए आंकणी ॥३०॥ जिन नगते जे नवि थयु रे, ते बीजाथी नवि थाय रे । एवं जे मुख नाखिये रे, ते वचनशुदि कहिवाय रे॥चतुरणा१॥द्यो नेद्यो वेदना रे जे सहतो अनेक प्रकार,रे ॥ जिण विणपर सुर नवि नमे रे, तेहनी काया शुनदार रे ॥चतुरणाश्शाढाल॥ मुनि जन मारगनी देशी।समकित दूषण परिहरो, तेमा पहिली शंका। ते जिन वचनमा मत करो॥जेहने सम नृप रंका, समकित दूषण परिहरी ॥ए आंकणी ॥२३॥ कंखा कुमतनी वांउना, बीजुं दूषण तजियें।। पामी सुरतरू परगडो, किम बानस नजियें ॥सम ॥ २ ॥ संशय धर्मना फ लतणो, विचिगिला नामें ॥त्रीजूं दूषण परिदरो, निज शुन्न परिणाम ॥स मण्॥श्य॥ मिथ्यामति गुण वर्णनो, टालो चोथो दोप नन्मारगि थुगतां हुवे, नन मारग पोष ॥ सम० ॥ २६ ॥ पांचमो दोष मिथ्यामती, परिचय नवि, कीजे ॥श्म शुन्न मति अरविंदनी, नली वासना लीजे ॥ सम ॥ ॥ २७ ॥ ढाल ॥नोलिडा सारे विषय न सचीये ।। ए देशी॥ आठ प्र नाविक प्रवचनना कह्या, पावयणी धुरि जाण ॥ वर्तमान श्रुतना जे अर्थ
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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