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________________ (१०) - सद्यायमाला. - - - ॥४॥ काया कामिनी श्म कहे व०॥ सुण तुंआतमराम अ०॥ ई विमल नरनव थकी व०॥ पामीस अविचल गम ॥ अ०॥५॥ ॥अथ सुमति विलास सद्याय प्रारंज ।।. ..|| ॥ पडजो कुमातगढना कांगरा, मरजो मोहमहेराण ॥ वालो माहरो निजधरेंनावीयो, एणे परघर कीधा प्रयाण ।। वा॥श्म कहे सुमती सु जाण ॥ वाण॥१॥ दांत पारे ती तणा, पाडोसणना लडं प्राण ॥जेणे महारो जीवन नोलव्यो, लश्नाख्यो नरकनी खाण ॥ वा०॥ ॥ मा यायें मद पाश्ने, वास्यो पोताने वास ॥.माहारोने वासो एणे टालियो, श्णे मुज कीधी निरास ॥ वाण ॥३॥ गुणवंतना गुण गोपवी, निगुणाशुं मांमे गोठ॥आप स्वरूप न उलखे, एतो पापनी चलवे पोउ ॥ वा॥४ ॥ अपूज्य साथें धरे आसकी, एतो पूज्यना पूजे पाय ॥ परम महोदय पामशे, ज्यारें आवशे आपणे गय ॥ वाण॥५॥श्रीदादापास पसाउलें, मेंतो कुमतीनो पाड्यो कोट । घरे आण्यो निज घरधणी, मेंतो शोकनी चूकवी चोट । वा॥६॥ उदयरतन-वाचक वदे, पूजशे जे प्रजुना पाय ॥ ते परमपदें पधारशे, वली संपद लेशे सवाय ॥ वाण॥७॥ ॥अथ श्री कुगुरु पचीशी॥प्रारंजः ॥ ॥दोहा॥ ॥श्रीजिनवर प्रणेमुं मुदा, लही सद्गुरु आधार ॥ कुगुरु तणा लक्षण कडं, सुणजो सहु नर नार ॥१॥ ॥ ढाल | चोपाश्नी देशी ।। मन शुद्धे सुणजो नर नार, रीशम धर जो हृदय मकार ॥ पंच प्रमाद जे नवी उमशे, ते गुरु केम तरशे तारशे ॥२॥ कंठ खगें नित्य नोजन करे, जे परलोक थकी नवी मरे ॥ समी सां जथी संथारशे ॥ते गुरु ॥३॥ दिन उग्या विण दातण करे, मनमा सूगपणुं आदरे ॥ न करे कहिये नोकारशी ॥ ते॥४॥ पटीयां पाडे समारे केश, नित्य नित्य नवा बनावे वेश ॥ मुख धोवे जोवे आरशी॥ ते॥५॥ हसे धसे बोले पारसी, न्हा धो जोवाना रसी ॥ वेश बना वे कल्याना रसी ॥ ते॥६॥ साकर फूध पीये परजात, चावल दाल जमे नित्य जातः॥ सखर शाकविण नवी जिमशे ॥ ते॥७॥ जनुं नीर न पीवे कदा, सजल कुंज जरी मूके सदा ॥ जर जरीये पाणी गरशे ॥ ते॥ ७॥ जे नित्य राते दीवो करे, पडदो बांधे खूणे तरे ॥ जदया - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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