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________________ (१५४) सद्यायमाला - - AL-- - कीजें धर्म का जे वीराधमैं शद्धि सिकिघर हूंत, धर्मे संकट सति नाज। ताश्चाधर्मे सूर्य निरतो तपे; धमै पाप करम सवि खपे॥धर्मे होये रूपनो। योग,धर्मपसायें संपत्ति लोग ॥श्यानणे गुणे ने बहु तप करे,पण सम कित सूधुंनाद।समकित विण ते सहुए फोक, समकितअादर कर, रोकाश्६ । समकित माय बाप संसार, समकितथी सुख संपति सार। समकित ए ह धर्मनुं मूल, समकितथी सहुए अनुकूल ॥७॥ समकित झकि सिकि घर घणी, समकित लगें होये सुर धणी ॥ समकित सीके सघलां काज, समकित लगें त्रिजुवन- राज ॥२०॥ समकित सहितनुं सुणो प्रमाण, कृष्णराय, जुठ मंमाण ॥ तपविण श्रेणिक राजह धणी, लेशे पदवी अ रिहंत तणी ॥णा समकित पाले जे नर नार, वली न आवे ते संसार॥ एम जाणी समंकित आदरो, सिकि रमणी जेम लीला वरो॥३॥इति। 1. ॥अथ श्री सुगुरु पच्चीशी प्रारंजः॥ ॥ सुगुरु पीगणो एणे आचारें, समकेत जेहनुं शुरू जी ॥ ए आंकणी || ॥ कहेणी करणी एकज सरखी, अहर्निश धर्म विदुध जी ।। सु॥१॥ निरतिचार महाव्रत पाले, टाले सघला दोष जी ॥ चारित्र शुं लय लीन रहे नित्य, चित्तमां सदा संतोष जी ॥ सु॥॥ जीव सहुना जे जे पी यर, पीडे नहीं खटकाय जी ॥ आप वेदन पर वेदन सरखी, नहणे न करे घाय जी ॥ सु॥३॥ मोह कर्मनें जे वश न पडे, नीरागी निरमा य जी ॥ जयणा करतो हलुये चाले, पूंजी मूके पाय जी ॥सु ॥४॥ अरहो परहो दृष्टि न देखे, न करे चालतां वात जी ॥ दूषण रहित सूज तो देखे, तो लिये पाणी जात जी ॥सु०॥५॥ नूख तृषा पीड्याउःख पी डे, बूटे जो निज प्राण जी। तोपण अशुरु थाहार न लेवे, जिनवर आ ण प्रमाण जी ॥ सु॥६॥ अरस निरस आहार गवेषे, सरस तणीन ही चाह जी ॥श्म करतां जो सरस मले तो, हरख नहीं मनमांह जी॥ । सु॥७॥शीतकाले शीतें तनु सूके, उनाले रवी ताप जी ॥ विकट परीसह घट अहीयासे, नाणे मन संताप जी॥ सु॥॥मारे कूटे करे उपडव, को कलंक ये शीश जी॥ कर्म तणा फल जाणी उदीर, पण नाणे मन रीश जी॥ सु०॥ ए॥ मन वच काया जे नवि दंमे, बंमे पांच प्रमाद जी ॥ पंच प्रमाद संसार वधारे, जाणे ते निःस्वाद जी ॥ सु०॥ - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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