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________________ ( ६) सद्यायमाला. - - ज॥ लोग ॥६॥ जावसागर पंमित जणे रे, वीरसागरखुध शिष्य ॥लोज || तणे त्यागें करी रे, पहोचे संयल जगीश ॥ जय ॥ खोप ॥ ॥ इति ॥. - - - - - - - - . . -- - ॥अथ श्री उदयरत्नजी कृत शीयलनी नववाड प्रारंजः।।. ॥ दोहा॥.. श्री गुरुने चरणे नमी, समरी शारद माय ॥ नवविध शीलनी वाइनो, उत्तम कहुं उपाय ॥१॥ . ., . . 11. | ढाल पहेली ॥ वधावानी । पहेलोने पासो होजी गए देशी।। ॥ पहेलीने वाडें होजी वीर जिनवरें कह्यो, सेवो सेवो हो वस्ति विचा| रीने जी ॥ स्त्री पशु पलंग होजी वासो वसे जिहां, तिहां नवि रहे, हो शीलव्रतधारीने जी॥२॥जिम तरुमालें. होजी वसतो वानरो, मना बीये रखे नृशं पहुंजी॥ मंजारी देखी होजी पिंजरमांहेथी, पोपट चिंते हो रखे दोटें चढूंजी॥३॥ जिम सिंहलंकी होजी सुंदरी शिर धरी, ज खनुं बेहुं हो जुगतिशुं जालवे जी ॥ तिम मुनि मनमें होजी राखे गोप वी, नारीने निरखी होजी चित्त नवि चालवे जी ॥४॥ जिहां होवे वा सो होजी सेहेजे.मंजारनो, जोखम लागे हो मुषकनी जातने जी ॥ तेम ब्रह्मचारी होजी,नारीनी संगते, हारे हो हारे रे शीयल सूधांतने जी ॥ ५॥त्रुटक ॥ एम वाड विघटे विषय प्रगटे, शंका कंखा नीपजे ॥ तीव्र | कामें धातु बिगडे; रोग बहुविध ऊपजे॥ मन्नमाहे विषय व्यापे, विषयशुं । मन रहे मली॥ उदय रत्न कहे तिणे कारण, नव वाड राखो निर्मली ॥६॥ . ॥ ढाल बीजी॥ विदर्जदेश कुंमनपुर नयरी॥ए देंशी॥ ॥सुरपति सेवित त्रिजुवन धणी, अज्ञान तिमिरहर दिनमणि ॥ शीय लरत्ननां जतन तंते, नांखी वाड बीजी जगवते ॥ १॥ त्रुटक ॥ नगवंत जाखे संघ साखे, शीयल सुरतरु राखवा॥मुक्ति महाफल हेतु अद्भुत,चा रित्रनो रस चाखवा ॥२॥मीठे वचनें माननीशुं, कथा न करे कामनी ॥ वाड:विधगुंजेह पाले, बलिहारी तस नामनी ॥३॥ वात व्रतने घातका री, पवन जिम तरुपातनें॥ वात करतां विषय जागे, ते माटे तजोए वात ने-॥४॥ लींबु देखी पूरथी जिम, खटाशें माढा गले। गगनें गर्जारव सुं पीने, हडकवा जिम उछले ॥५॥तिम ब्रह्मचारीना चित्त विणसे, वयण सुं दूरीनां सुणी ॥ कथा तजो.तिणे कारणे, श्म प्रकाशे विजुवन धणी ॥६॥ T - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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