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________________ सुधारक प्रेमीजी इस पत्र में यह भी बताया गया था कि लेख लिखने में किन-किन बातो का ध्यान रखना चाहिए। पूरे दो पन्ने की चिट्ठी थी। उससे मुझे अपने विकास का मार्ग निश्चित करने मे बडी सहायता मिली और मुझमें आत्म-निर्भरता उत्पन्न हुई। ___ जब वह लेख छपा तव मैने देखा कि मेरी भावना स्पी बेडौल मूर्ति को चतुर कारीगर ने छीलछाल कर सुडौल और सुन्दर बना दिया है और आश्चर्य यह कि मुझे ही उसका निर्माता बताया है । प्रेमी जी विधवा-विवाह और अन्तर्जातीय विवाह के प्रचारक और पोषक रहे है। उन्होने सर्वप्रथम विधवा-विवाह का आन्दोलन अमदावाद-निवामी स्व० मणिलाल नभूभाई द्विवेदी के एक गुजराती लेख का अनुवाद प्रकाशित करके प्रारभ किया। मुद्दत तक पक्ष-विपक्ष में लेख निकलते रहे। इन लेखो से प्रभावित होकर और अपनी विरादरी की कोई क्वारी लडकी शादी के लिए न मिलने के कारण स्व० प० उदयलाल जी काशलीवाल ने विधवा-विवाह करने का इरादा किया। उनके परमस्नेही वर्धा निवासी मेठ चिरजीलाल जी वडजात्या ने पहले तो क्वारी लडकी ही तलाश करने का प्रयत्न किया, लेकिन सफलता न मिली तो पडित जी ने एक विधवा से ही शादी कर ली। समारोह में श्वेताम्बर और दिगवर समाज के अनेक प्रतिष्ठित महानुभाव उपस्थित थे। प्रेमीजी ने भी पर्याप्त सहायता की। मम्कार-विधि सुप्रसिद्ध समाज-सुधारक स्व० प० अर्जुनलाल जी सेठी ने कराई। शादी तोहो गई, लेकिन तुरत ही भूलेश्वर (ववई) के दिगंवर जैनमदिर में खडेलवालो की पचायत हुई। विवाह में भाग लेने वाले सभी व्यक्तियो को आमन्त्रित किया गया था। स्व० सेठ सुखानन्द जी और प० धन्नालाल जी पचायत के मुखिया थे। ___ बहुत वाद-विवाद के बाद सेठ सुखानन्द जी ने पूछा, "अव हम लोगो के साथ आपका कसा वर्ताव रहेगा ?" सव चुप थे। जाति से अलग होने का साहस किसी में भी नही था। प्रेमीजी वोले, "हम गरीव आदमी धनिको के साथ कोई सवध नहीं रखना चाहते।" । ___ सेठ जी ने कहा, "अगर आप लोग माफी मांग लें और प्रतिज्ञा करें कि भविष्य में कभी ऐसे काम में शामिल न होगे तो आप लोगो को माफ किया जा सकता है।" ___इस पर प्रेमीजी से न रहा गया । बोले, "माफी | माफी वे मांगते है, जो कुछ गुनाह करते है। हमने कोई गुनाह नहीं किया। विधवा-विवाह को मै समाज के लिए कल्याणकारी समझता हूँ। जैन समाज में एक तरफ हजारो वाल-विधवाएं है और दूसरी तरफ हजारो गरीव युवक क्वारे फिर रहे है। उन्होने समाज के जीवन को कलुषित कर रक्खा है। आये दिन भ्रूण-हत्याए होती रहती है। इनसे छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही इलाज है और वह है विधवा-विवाह।" ___ इतना कहकर प्रेमीजी वहां से चल दिये। कहना न होगा कि वे और उनके समर्थक पचायत से अलग कर दिये गये। कुछ समय पश्चात् प्रेमी जी ने अपने छोटे भाई नन्हें लाल की शादी एक विधवा से की। इस वार परवारो की पचायतों ने उन्हें भाई-सहित जाति-च्युत कर दिया। कुछ लोगो ने प्रेमीजी को सलाह दी कि कह दीजिये कि नन्हेंलाल के साथ आपका खानपान का सवध नही है। लेकिन प्रेमीजी ने कहा, "यद्यपि मै बबई में रहता हूँ और नन्हेंलाल अपने गाँव देवरी में, इससे साथ खानेपीने का प्रश्न ही नही उठता, तथापि मै ऐसी कोई घोषणा नही कर सकता। घोपणा करने का मतलब यह है कि मैं अपने सिद्धान्त पर कायम नहीं रह सकता हूँ। डरपोक हूँ और स्वय अपनी बात पर आचरण न कर समाज को गुमराह कर रहा हूँ।"
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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