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________________ विश्व-मानव गाधी ७२६ विवाहित अविवाहित मभीको इस रास्ते वीर-वीर गति मे जाना है । मत्य किमी एक की बपौती नही । वह सव का है और सव को उसकी उपलब्धि करनी है । वालब्रह्मचारी ही सत्यान्वेपक वने श्रौर वाल- बच्ची वाला गृहस्थ सत्य से विमुख रहे, ऐसा कोई नियम नही । ब्रह्मचारी, गृही, वनी, सन्यामो सभी मत्य के अधिकारी है और सब को उमका साक्षात्कार होना चाहिए। इसीलिए गाधी जी कहते हैं "तब जो विवाह कर चुके है, उनकी क्या गति ? उन्हें सत्य की प्राप्ति कभी न होगी ? वे कभी सर्वार्पिण नहीं कर सकते ? हमने इसका रास्ता निकाला ही है--विवाहित विवाहित मा हो जाय। इन वारे में इससे बढकर मुझे दूसरी बात मालूम नही । इस स्थिति का श्रानन्द जिमने लूटा है, वह गवाही दे सकता है । श्राज तो इम प्रयोग की सफलता सिद्ध हुई कही जा सकती है । विवाहित स्त्रीपुरुष का एक- दूसरे को भाई वह्न मानने लग जाना सारे झगडो से मुक्त हो जाना है । ससार भर की मारी स्त्रियों बहने है, माताये है लडकियाँ है—यह विचार ही मनुष्य को एकदम ऊँचा ले जाने वाला है । उमे बन्धन से मुक्त कर देने वाला हो जाता है । इसमें पति-पत्नी कुछ खोते नही, उलटे अपनी पूजी बढाते हैं, कुटुम्व बढाते है । प्रेम भी विकार रूपी मैल को निकाल डालने से वढता ही है। विकार के चले जाने मे एक-दूसरे की मेवा भी अधिक अच्छी हो सकती है, एक दूसरे के बीच कलह के अवसर कम होते है । जहाँ स्वार्थी, एकागी प्रेम है, वहाँ कलह के लिए ज्यादा गुजाइश है।" 'जहाँ स्वार्थी, एकागी प्रेम हैं, वहाँ कलह के लिए ज्यादा गुजाइग है, इस एक वाक्य में गाधी जी ने अपने समय की मानवता को अमर मन्देश दिया है । मानव जीवन के सभी क्षेत्रो मे श्राज कलह नाम की जिस चीज़ ने ताडव मचा रक्खा है, यह स्वार्थ ही उनका एकमात्र सूत्रधार है और इसकी विभीषिका का कोई अन्त नही । घर में, ममाज में राष्ट्र मे और विश्व में आज सर्वत्र इमी की तूती बोलती है और छोटे-वडे, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, पढेअनपढे मभी इसके पीछे पागल है--उसकी मोहिनी से 'मुग्ध । इसीके कारण श्राज का हमारा पारिवारिक जीवन छिन्न-विच्छिन्न हो गया है, ममाज ने उच्छृङ्खलता धारण करली है, राष्ट्रो ने श्रामुरी भाव को अपना लिया है। और विश्व की शान्ति, उसका ऐक्य सकट में पड गया है । विज्ञान ने यद्यपि दुनिया को एक कर दिया है, पर स्वार्थ श्रव भी उमं खड-गड किये हुए हैं और उसने विज्ञान को भी अपना चाकर वना लिया है । वडे-बडे वैज्ञानिक आज स्वार्य के शिकार होकर राष्ट्र-राष्ट्र के बीच शत्रुता की खाई को चौड़ा करने में लगे है और शुद्ध, मात्विक, सर्व-हितकारी विज्ञान की उपासना मे कोमो दूर जा पडे है । ऐमे समय एक महान् वैज्ञानिक की-सी मूझ-बूझ के साथ गावी जी विश्व को निस्वार्थ और सर्वव्यापी प्रेम का पावन मन्देश सुना कर उमे सच्चे मार्ग पर लाने और चलाने की कोशिश में लगे है | विश्व की मानवता को गाधी जी की यह एक अनमोल देन है । निस्वार्थ और सर्वव्यापी प्रेम की इस अलौकिक उपासना ने ही गाधी जी को अहिंसा, सत्य, अस्तेय श्रौर ब्रह्मचर्य की भावना के साथ-साथ श्रम्वाद, अपरिग्रह, गरीरश्रम, निर्भयता, सर्वधर्मसमभाव, स्वदेशी और अस्पृश्यतानिवारण का व्रती वनाया है और उनकी इस युगानुयुग-व्यापिनी, अविचल, और सतत व्रतनिष्ठा ने देश के लाखो उद्बुद्ध नर-नारियो को वैमा व्रती जीवन विताने की प्रवल प्रेरणा प्रदान की है। यही नही, दूर-पास के विदेशो में भी अनेको ऐसे हैं, जो इस क्षेत्र में गावी जी को अपना गुरु मानते हैं और उनके बताये जीवन-पथ पर चल कर अपने को धन्य अनुभव करते हैं । इनमें विश्वविख्यात वैज्ञानिक, विचारक, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, धर्मगुरु, महन्त, सन्त, समाज सुधारक, लोकनेता, लोक-मेवक, पडित प्रपडित, अमीर-गरीब, स्वाधीन -परावीन, सभी शामिल हैं । सव समान भाव से गावी जी के प्रति अनुरक्त है और कृतज्ञ भाव से उनका पदानुसरण करने में व्यस्त । गाधी जी के इस विराट् व्यक्तित्व का क्या कारण है ? उनमे विश्व-मानव का यह ऐसा लौकिक विकास कैसे हुआ ? वे विश्व- पुरुष की कोटि को कैसे पहुँचे ? इन मव का एक ही उत्तर है शून्यता । अपने को मिटा कर शून्य बना लेने की एक अद्भुत कला गावी जी ने अपने अन्दर विकसित की है । शून्य की उनकी यह नसीम उपासना ही श्राज उनको ममार की सर्वश्रेष्ठ विभूति बनाये हुए है । इम शून्यता ने ही उनकी महानता को इतना २
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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