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________________ कौटिल्य-कालीन रसायन श्री. सत्यप्रकाश, डी० एस-सी० जिन व्यक्तियो ने किसी भी भाषा मे मुद्राराक्षम नामक नाटक पढा है, वे चन्द्रगुप्त और चाणक्य के नाम से परिचित है । चाणक्य का ही नाम विष्णुगुप्त या कौटित्य है । कामन्दक ने अपने 'नीतिसार' के प्रारम्भ में विष्णुगुप्त के सम्बन्ध में ये शब्द लिखे है यस्याभिचार वत्रेण वज्रज्वलन तेजसः । पपात मूलत. श्रीमान्सुपर्वा नन्द पर्वत ॥ एकाकी मन्त्रशक्त्या यशक्त्या शक्ति घरोमप । प्राजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम् ॥ नीतिशास्त्रामृत धीमानर्थशास्त्र महोदधे । समुद्दधे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ।। वर्शनात्तस्य सुदृशो विद्याना पारदृश्वनः । यत्किञ्चिदुपदेश्याम राजविद्या विवा मतम् ॥ कौटिल्य अर्थशास्त्र के कुछ उद्धरण दण्डि के 'दशकुमार चरित्र' में भी पाये जाते हैं । विष्णुगुप्त के सम्बन्ध में इसके ये वाक्य महत्त्व के है अधीष्व तावद्दण्डनीतिम् इयमिदानीमाचार्य विष्णुगुप्तेन मौर्यार्थ पड्भिश्लोक सहस्रस्सक्षिप्ता संवेयमीत्य सम्यगनुष्टीयमाना यथोक्तकार्यक्षमेति ॥ इस वाक्य से यह स्पष्ट है कि कौटिल्य अर्थशास्त्र ६००० श्लोक का है। यह आश्चर्य की बात है कि इतना बडा अन्य पुरातत्त्ववेत्ताप्रो और विद्वानो की दृष्टि में इतने दिनो छिपा कैसे रहा? हमारे देश मे पाश्चात्य पद्धति पर प्राच्य ग्रन्यो के अनुशीलन का काम सर विलियम जोन्स के समय से विशेष प्रारम्भ हुआ, पर इस वीसवी शताब्दी को ही इस बात का श्रेय है कि यह लुप्तप्राय ग्रन्य हमको फिर से मिल सका। इस ग्रन्थ के कुछ उद्धरण मेधातिथि और कुल्लूक की टीका मे पाये जाते है, पर साधारणत यह धारणा थी कि समस्त ग्रन्थ लुप्त हो गया है। ४० वर्ष लगभग की बात है कि मैसूर राज्य की प्रोरियटल लायनेरी को तजोर के पडित ने एक हस्तलिखित प्रति इस ग्रन्थ की दी, साथ में इसकी टीका की एक खडित प्रति भी थी । उक्त पुस्तकालय के अध्यक्ष श्री श्याम शास्त्री ने अत्यन्त परिथम से इस पुस्तक की प्रामाणिकता सिद्ध की, और "इडियन एटिक्वेरी" पत्रिका मे सन् १९०५ से यह ग्रन्थ मुद्रित होने लगा। मैसूर राज्य के अनुग्रह से सन् १९०६ में पूर्ण ग्रन्य छप कर प्रकाशित हुआ। सन् १९१५ में श्री श्याम शास्त्री द्वारा किया गया अनुवाद भी छपा। पजाब अोरियटल सीरीज़ मे प्रो० जॉली के सम्पादन मे और ट्रावनकोर राज्य की सरक्षता मे प्रकाशित होने वाली सस्कृत-सीरीज़ में स्वर्गीय महामहोपाध्याय प० गणपति शास्त्री के सम्पादकत्व में इसके दो सस्करण और निकले। इधर हिन्दी में भी इस अर्थ-शास्त्र के दो अनुवाद (प० गगाप्रसाद शास्त्रीकृत महाभारत कार्यालय दिल्ली से एव प्रो० उदयवीर शास्त्रीकृत मेहरचन्द्र, लक्ष्मणदास लाहौर से) छपे है। इस ग्रन्य के प्रकाशित होते ही प्राच्य-साहित्यज्ञो में एक क्रान्ति-सी आ गई, और कौटिल्य के सम्बन्ध में अनेक समालोचनात्मक ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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