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________________ ६६८ प्रेमी-अभिनंदन ग्रंथ - एक बार चरखा कातते हुए चरखे को ही सम्बोधित करके कहती है- गूँ गूँ मव कर हां इन्वरो कन्यर्यन त फुलला मलयो योनि छु नरल त कल्म छ परान इल्म वान लगयो हा, इन्दरो. हे चरखे ! तू 'गू गूं' शब्द न निकाल । में तेरी गुनियों में इत्र लगाऊँगी । तेरे गले में माल, (योनि --- यज्ञोपवीत का धागा) है और तू कलमा (सत्य) पढ़ता है। हे चरखे, तू वडा ही पण्डित है । इसके अतिरिक्त इनकी रचनाए कम ही उपलब्ध है । कोई सग्रह नही छपा । कुछ फुटकर पद्य हमको इधर-उधर से कुछ मनुष्यो की जबानी मिलते है, जो कि कवियित्री के ही कहे हुए प्रसिद्ध है, परन्तु इस सम्बन्ध में अधिकतर निर्माताओ के नाम ज्ञात नहीं है । अनेक पद्य बहुत सुन्दर और ऊँचे दरजे के है, परन्तु खेद है कि अभी तक उनका प्रामाणिक सग्रह नही हो सका है । उदाहरण के लिए निचला पद्य देखिए यार छुम करान प्रसवनि हिलय विलन्य बोल्यम मारस पान याद वित भवनन मुछनस शिलय · ₹ छाय जन लूसस पत लारान वात न जमीनस विलनय बोज्यम मारस पान. मेरा प्रीतम मुझसे हजारों बहाने बनाता है । यदि वह मेरी प्रार्थना को न सुनेगा तो मैं प्राण त्याग दूंगी । मुझे वचन देकर मेरे प्रीतम ने मुझे ककड की भाँति फेंक दिया ( भुला दिया ) । किन्तु में तो छाया की भांति उसके साथ ही रहूँगी । यदि पृथ्वी पर उसे न पा सकी तो आकाश तक उसे पकडने जाऊँगी । यदि वह मेरी प्रार्थना नही सुनेगा तो में अपने प्राण त्याग दूगी । एक और सन्त स्त्री का उल्लेख आवश्यक है । इनका नाम रूपभवानी था । कहा जाता है कि यह भक्त थी और बहुधा प्रश्नोत्तर में ही इनकी तीव्र बुद्धि का परिचय मिलता है । इनकी रचनाएँ बहुत कम लोगो में प्रचलित है । कारण कि इनके विचार कट्टर आध्यात्मिक है और जनता इन विचारो को आसानी से समझ नही पाती । एक छोटी-सी कथा इनके बारे में प्रचलित है । कहते है कि एक बार किसी ने इनसे प्रश्न किया कि आपके कुरते का क्य रग है ? इन्होने भट उत्तर दिया- "जाग- -सुरठ-मजेठ ।" ये तीनो शब्द तीन रंगो के नाम भी है और इनवे पिलय भावात्मक अर्थ भी निकलते है (१) जाग - काही रग भावार्थ - देख । · (२) सुरठ-रग विशेष भावार्थ - उसे ( प्रभु को ) पकड । (३) मजेठ— मजीठ रग : भावार्थ-व्यर्थ के आडम्बरो में न पढ । इस प्रकार इन्होने तीनो रंगो के नाम भी लिये और यह भी कहा कि "जाग कर ईश्वर को देखने का प्रयत्न करो और व्यर्थ के आडम्बरो को छोड दो ।" इस एक ही वाक्य से इनकी तीव्र बुद्धि का अच्छा परिचय मिलता है इस लेख में अन्य कवियित्रियो के बारे में कुछ लिखना सम्भव नहीं, क्योंकि काश्मीरी साहित्य लेखबद्ध + होने के कारण उसके निर्माताओं के विषय में प्रामाणिक और विस्तृत जानकारी प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है हमें यह देख कर बहुत ही खेद होता है कि इस प्रदेश के साहित्य-प्रेमी इस प्रकार की उत्कृष्ट रचनाओं के संग्रह नों सरक्षण की भोर ध्यान नही देते । यदि प्रयत्न किया जाय तो बहुत सी मूल्यवान सामग्री प्राप्त हो सकती है !श्रीनगर ]
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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