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________________ प्रेमी-अभिनदन-पथ सीन मुचरित हाल बावहस 'कीन म्योन क्यांह छुसय म्य छ, तहन्ती मनिकामन सुछ वे परवाय लद न ति खाफ रोयस वद न वे फसय मस छोरश्व यार करनस मै अपना दिल खोल कर अपनी दशा दिखाऊँ और बताऊँ कि मुझे क्या दुख है । मै तो उसी की मनोकाक्षा करती रहती हूँ, किन्तु वह निष्ठुर मेरी तनिक भी सुधि नहीं लेता। फिर उसको निष्ठुरता पर अपने शरीर मे खाक न मलू ? क्या मैं निराश हो कर न रोऊँ ? उस प्रीतम ने मुझे बहुत निराश कर दिया है। ननि कथ वन मनसूरन कनि लय हसय मनि मज सुई नार गुडनम हनि हनि झम रेह तनि मुचरित हाल वावहस । तनि तन लागहसय वचार मन्सूर ने सत्य बाते कही तो उसे पत्थर मारे गये। मेरे मन में भी वही अग्नि प्रज्वलित हो रही है और धीमी-धीमी लौ उठ रही है । मैं अपना दिल खोल कर दिखाती, तुम्हारे गरीर से अपना शरीर लगाती। तव तुम्हें मालूम होता कि मेरे अन्दर कैसी ज्वाला है ? द्रुद हरको प्याल बरसय मसय या त दुपनम च त दामा न त दामा चाव ' बोलि नय दपम रोजि महार म्योन दावा छुसय मै सुरा के प्याले भरूँगी। उस (प्रीतम) से एक घूट पीने को प्रार्थना करूंगी अथवा कहूंगी कि तुम नही पीते तो मुझी को एक घुट पिला दो। यदि वह मेरी प्रार्थना न सुनेगे तो कहूंगी कि प्रलय के दिन मैं दावेदार बनूंगी। इन रचनामो पर फारसी का प्रभाव होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं, क्योकि समय का प्रभाव पडना आवश्यक ही था। इसके पश्चात् एक कवियित्री का नाम और पाता है। उनका अपना नाम तो विख्यात नहीं। वे पति के नाम से ही जानी जाती है। वे मुशी भवानीदास की स्त्री थी। यह अपने समय की अच्छी कवियित्री थी। चरखा इनकी विशेष प्रिय चीज थी। इन्होने जितनी भी कविताएं की, अधिकाश चरखा कातते हुए ही की । कहती है
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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