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________________ ६६४ प्रेमी-प्रभिनदन-प्रथ गुरू के शब्द पर जो विश्वास धरे, ज्ञान रूपी लगाम से चित्त रूपी घोडे (तोरग-फारसी शब्द) को रोके और जो इन्द्रियो का शमन करके पानन्द पाये तो भला कौन मरे और किस को मारे ? वे कवीर की भांति गुरू पर अधिक विश्वास करती जान पडती है। गुरू पर इतनी आस्था है कि उनकी कृपा से परमानन्द तक मिल सकता है और फिर गीता के अनुसार कोई किसी को मार नहीं सकता, न कोई मरता है। ठीक भी है जव परमानन्द प्राप्त कर लिया तो फिर मरने का प्रश्न ही नहीं रह जाता। वे निरन्तर अपने आपको पहचानने का प्रयल करती जान पडती है। कहती है छाडान लुसुम पानिय पानस छयपिथ ज्ञानस वोत न कहं लय फरमस वाचस मय खानस बर्य वर्य प्याल त च्यवान न कह ।।६।। अपने आपको ढूढ़ते-ढूढते मै तो हार गई। उस गुप्त ज्ञान तक कोई न पहुंचा, पर जब मैने अपने आपको उसमें लय कर दिया तो मै ऐसे अमृत धाम में पहुंची, जहां प्याले तो भरे पडे है, पर पीता कोई भी नहीं। अपने आपको पहचान कर "मैं" और "तू" के भेद-भाव को मिटा देना चाहती है। कहती है नाथ ! न पान न पर जोनुम सवा हि बुदुम अकुय देह ध्य बो बो च्य म्युल न जोनुम च कुस बो क्वस छुह सन्देह ॥७॥ नाथ, न मैने अपने को जाना, न पराये को। सदा शरीर की एकता को दृष्टि में रक्खा। "तू-मै" और "मै-तू" का एकात्म मैने नही अनुभव किया। तू कौन है ? मै कौन हूँ? यही तो मेरे मन में सन्देह है। वे "मैं" और "तू" के भेद-भाव को मिटा देना चाहती है। सारे ब्रह्माण्ड को ब्रह्ममय देखते हुए कहती है गगन चय भूतल चय चय दयन त पवन त राय अर्घ चन्दुन पोष पो म चय चय सकल तय लगजि कस ॥८॥ आकाश तू ही है । पृथ्वी भी तू ही है । दिन, पवन और रात भी तू ही है । अर्घ, चन्दन, फूल और जल भी तू ही है। तू ही सब कुछ है । फिर भला तुझ पर चढाये क्या? ससार की प्रत्येक वस्तु में वे प्रभु का दर्शन करती है। इसी प्रकार एक स्थान पर और भी कहती है दीव वटा वीवर वटा हेरि बोन छु एक वाट पूज कस करख हूत वटा कर मनस त पवनस सघाठ ॥॥ देव (मूर्ति) भी पत्थर का ही है। देवालय भी पत्थर का ही है। ऊपर से नीचे तक एक ही वस्तु, अर्थात् पत्यर ही पत्थर है । हे मूर्ख ब्राह्मण, तू किस को पूजेगा? तू मन और आत्मा (पवनस) को एक कर। इसी प्रकार के भाव कबीर ने भी व्यक्त किये है पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहार। घर की चाकी पूजिए पीस खाय ससार ॥
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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