SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 733
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७८ प्रेमी-अभिनदन-ग्रंथ आधुनिक सस्कृत-कवियित्रियाँ यद्यपि आजकल सस्कृत का पठन-पाठन बहुत कम हो गयाहै, फिर भी अभी भारतीय महिलाएँ सस्कृत में काव्य इत्यादि की रचना करती है, इसके अनेक प्रमाण पाये जाते है-जैसे मलावार की लक्ष्मीरानी-कृत सम्पूर्ण काव्य 'सन्तान गोपालन'। इस सम्बन्ध में और भी कितने ही नाम लिए जा सकते है, जैसे-अनसूया कमलाबाई वापटे, बालाम्बिका, हनुमाम्बा, ज्ञानसुन्दरी, कामाक्षी, मन्दमय धाटी, आलमेलम्मा, राधाप्रिया, रमावाई, श्री देवी बालाराज्ञी, सोनामणीदेवी, सुन्दरवल्ली, त्रिवेणी इत्यादि । पौराणिक कर्म-पद्धति मण्डलीक नृपति की कन्या हरसिह राजा की महारानी वीनयागी ईस्वी सन् की तेरहवी या चौदहवी शताब्दी मे गुजरात की शोभा बढाती थी। श्रुति, स्मृति और पुराण की ये प्रगाढ पण्डिता थी। 'द्वारका-माहात्म्य' नामक उनकी पुस्तक सिर्फ कई एक विशिष्ट प्रादमियो की धार्मिक क्रिया की सहायता के लिए ही नहीं लिखी गई है, बल्कि सव जातियो और वर्णों की धर्म-क्रिया सुचारु रूप से सम्पादित करने के लिए उन्होने इम गन्य की रचना बहुत देशी और तीर्थों के भ्रमण मे ज्ञान प्राप्त करने के बाद की थी। इससे यह बात प्रमाणित होती है कि धर्म-मकान्त विषयो पर -खासकर लौकिक प्रचार के विधान के सम्बन्ध मे केवल वैदिक युग में ही स्त्रियो का अधिकार था, यह बात नही। उसके बाद के युगो में भी स्त्रियां देश के धर्म-सक्रान्त विविध विषयो पर सुव्यवस्था कर गई है और आचारविचार तथा क्रिया-कलाप आदि विषयो पर नाना प्रकार के पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थो की रचना कर गई है। स्मृति-शास्त्र स्मार्त नारियो के वीच विश्वासदेवी और लक्ष्मीदेवी पायगुण्ड के नाम विशेप स्प से उल्लेखनीय है। ईस्वी सन् की पन्द्रहवी शताब्दी मे विश्वासदेवी मिथिला के राजसिंहासन की शोभा बढाती थी। वे पद्मसिंह की पटरानी थी। उनके राजत्व के अवसान के साथ उनका राज भवसिह के पुत्र हरसिह के हाथ में चला जा रहा था। वे अत्यन्त धर्मपरायणा थी। गगा के प्रति उनकी बहुत ज्यादा आसक्ति थी, इसलिए उन्होने गगा पर एक विस्तृत पुस्तक की रचना की, जिसका नाम 'गगा-पद्यावली' है। गगा से सम्बन्ध रखने वाले जितने भी प्रकार के धर्म, क्रिया-कर्म इत्यादि सम्भव है-जैसे, दर्शन, स्पर्शन, श्रवण, स्नान, गगा के तीर पर वास, श्राद्ध इत्यादि सभी विषयो पर श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहास, ज्योतिष इत्यादि ग्रन्यो से अपने मत की पुष्टि मे उद्धरण देकर उन्होने अधिकार-पूर्वक प्रकाश डाला है। स्मृति के कठोर नियमो के अनुसार आत्म-नियोग करने मे वे जरा भी विचलित नही हुई। उन्होने पहले के सभी स्मार्तों के मतो की विवेचना करके अपने मत का नि सदिग्ध भाव से प्रचार किया है । स्मृति-तत्त्व-सम्बन्धी उनकी वोध-शक्ति अपूर्व और विश्लेषण-शक्ति अनुपम थी। इस पुस्तक ने परवर्ती स्मार्त-मण्डली का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट किया था। फलस्वरूप मित्र मिश्र, स्मार्त-भट्टाचार्य रघुनन्दन, वाचस्पति मिश्र इत्यादि सभी स्मार्त-शिरोमणियोने इस ग्रन्थ के मत का श्रद्धा के साथ उल्लेख किया है और उसको सब जगह माना है। इतनी युक्ति और पाण्डित्यपूर्ण पुस्तक एक भारतीय महिला कैसे लिख सकती है, ऐसी शका भी किसी-किसी सम्मानित व्यक्ति ने की है। उनके विचार से यह पुस्तक विद्यापति-कृत है। परन्तु उक्त पुस्तक में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि यह विश्वासदेवी को लिखी हुई है और विद्यापति ने इसके लिये प्रमाण सग्रह करने मे थोडी-सी मदद दी है। सिर्फ इसलिए यह मान लेना कि यह पुस्तक विश्वासदेवी-कृत नहीं है, अत्यन्त अयुक्तिपूर्ण है। ____ लक्ष्मीदेवी पायगुण्ड सुप्रसिद्ध वैयाकरण वैद्यनाथ पायगण्ड की सहधर्मिणी थी। वे अठारहवी शताब्दी मे जीवित थी। अपनी 'कालमाधव-लक्ष्मी' नामक टीका के द्वितीय अध्याय के शेष मे उन्होने लिखा है कि सन् १७६२
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy