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________________ भारतीय नारी की वर्त समस्याएँ श्रीमती कमलादेवी चट्टोपाध्याय पिछले पच्चीस वर्षों में भारतीय नारी जगत में जो जाग्रति हुई है, वह वडे महत्व की है। यह जाग्रति कुछ अश में ससारकी गतिविधि के परिवर्तन से और कुछ अश मे भारतीय जनता में राजनैतिक उत्तेजनाके कारण, जिसका नारी-समाज के उत्थान में काफी हाथ है, हुई है। देश के स्वतन्त्रता-युद्ध ने स्त्रियो के उत्थान के लिये अच्छा अवसर प्रदान किया है। देश की निरतर पुकार ने महिलाओ को अध-विश्वास की चहारदीवारी से बाहर निकाल कर उनके लिए बहुत काल से अवरुद्ध उन नये द्वारो को खोल दिया, जिनमें उनके विचार और कर्म का क्षेत्र वहुत विशाल है। भारतीय नारियो ने भी इस अवसर को पाकर अपनी तत्परता दिखा दी। उन्होने यह प्रदर्शित कर दिया कि वे किसी भी दायित्व को सफलतापूर्वक वहन कर सकती है । वे सब प्रकार के दमन तथा मृत्यु तक का अडिग धर्य के साथ स्वागत करने को तैयार हो गई। अत यह अवश्यभावी था कि जिन नारियो ने स्वातन्त्र्य संग्राम में भाग लिया, उन्हें विजय में भी यथोचित भाग प्राप्त हो। इस क्षेत्र में काग्रेस के द्वारा मौलिक अधिकार मवधी प्रस्ताव-योजना में पुरुषो और स्त्रियो को समानाधिकार का भागी घोषित किया गया । इस दिशा में यह पहली महत्त्वपूर्ण वात थी। फिर देश की पुनर्निमाण-योजना-समिति में स्त्रियो की भी एक उपसमिति बनाई गई, जिसके द्वारा वे अपनी विशेष समस्यायो तथा भविष्य की स्थिति पर विचार प्रकट करे। यह उन्नति के क्षेत्र में एक दूसरी महत्त्वपूर्ण घटना थी। इसके बाद एक अन्य तर्क-सम्मत प्रस्ताव यह रक्खा गया कि स्त्रियो की एक विशेष उपसमिति बनाई जाय जो इस योजना को कार्यान्वित करे, क्योकि देश के उत्थान मे स्त्रियो का वैसाही भाग है, जैसा पुरुपो का, और जब तक स्त्रियो को राष्ट्रीय क्षेत्र मे वरावर भाग नहीं दिया जाता तब तक यथेष्ट प्रयोजन की सिद्धि असभव है। राष्ट्र-निर्माण-योजना-समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि "इस निर्माण योजना पर न केवल आर्थिक दृष्टियो से ही विचार करना आवश्यक है, अपितु सास्कृतिक तथा आध्यात्मिक भावना और जीवन में मानवता का समावेश भी आवश्यक वाते है।" इससे स्पष्ट है कि गृहस्थी की सॅकडी चहारदीवारी से बाहर का विशाल जीवन विना स्त्री के अपूर्ण है। गांधी जी ने इस वात को 'हरिजन' के एक अक में इस प्रकार प्रकट किया है, "मेरा निजी विचार यह है कि जिस प्रकार मूलत स्त्री और पुरुष एक ही है, उनकी समस्याएं भी एक होनी चाहिए। दोनो में एक ही आत्मा है, दोनो एक-सा जीवन-यापन करते है, दोनो एक-से ही विचार रखते है । एक दूसरे का पूरक है । विना एक दूसरे की सहायता के उनमे से किसी का जीवन पूर्ण नही हो सकता स्त्री और पुरुष दोनो के लिए जिस सस्कृति और साधारण गुणो की आवश्यकता है, वह प्राय एक से ही है स्त्री पुरुष की सगिनी है और उसके समान ही मानविक शक्ति रखती है। उसे अधिकार है कि वह पुरुष के छोटे-से-छोटे कर्म मे भाग ले और पुरुष के साथ-साथ वह भी स्वतन्त्रता में समानरूपेण अधिकार भागिनी हो। कठोर रीतियो के वधन में जकडे हुए महा अनाडी और क्षुद्र पुरुष भी स्त्रियो के ऊपर अपनी उस श्रेष्ठता का दम भरते है, जिसके लिये वे सर्वथा अयोग्य है और जो उन्हें कदापि न मिलनी चाहिए। हमारी स्त्रियो की वर्तमान दशा के कारण हमारे बहुत से उत्थान-कार्य रुक जाते है, हमारे बहुत से प्रयत्नो का यथेष्ट फल नही प्राप्त होता। स्त्री और पुरुष एक महान् युगल है, प्रत्येक को दूसरे की सहायता की आवश्यकता है, जिससे एक के विना दूसरे का जीवन युक्तिसगत नही कहा जा सकता। ऊपर के कथनो से यह परिणाम निर्विवाद निकलता है कि कोई भी वात जिससे दोनो मे से किसी एक की स्थिति के ऊपर धक्का पहुँचेगा, परिणामत दोनो के लिये बराबर नाशकारी होगी।"
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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