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________________ प्रेमी-अभिनंदन-ग्रथ ६२६ श्लोक २--उनके रत्नपाल नामक एक श्रेष्ठ पुत्र हुए, जो वसुहाटिकामें पवित्रताकी एक . (प्रधान) मूर्ति थे, जिनकी कीर्ति तीनो लोकोमे परिभ्रमण करनेके श्रमसे थककर इस जिनायतनके. बहाने ठहर गई। श्लोक ३-श्री रल्हणके, श्रेष्ठियोमें प्रमुख, श्रीमान् गल्हणका जन्म हुआ जो समग्र बुद्धिके निधान थे और जिन्होने नन्दपुरमे श्रीशान्तिनाथ भगवान्का एक चैत्यालय बनवाया था, और इतर सभी लोगोको आनन्द देनेवाला दूसरा चैत्यालय अपने जन्मस्थान श्रीमदनेशसागरपुरमे भी बनवाया था। श्लोक ४-उनसे कुलरूपी आकाशके लिये पूर्ण चन्द्रके समान श्री जाहड उत्पन्न हुए । उनके छोटे भाई उदयचन्द्र थे । उनका जन्म मुख्यतासे परोपकारके लिये हुआ था । वे धर्मात्मा और अमोघ दानी थे। श्लोक ५-मुक्ति-रूपी लक्ष्मीके मुखावलोकनके लिये लोलुप उन दोनो भाइयोने समस्त पापोंके क्षयका कारण, पृथ्वीका भूषण-स्वरूप और शाश्वतिक महान् आनन्दको देनेवाला श्री शान्तिनाथ भगवानका यह प्रतिविम्ब निर्मापित किया। सवत् १२३७ अगहन सुदी ३, शुक्रवार, श्रीमान् परमर्द्धिदेवके विजय राज्यमें । ____ श्लोक ६-इस लोकमें जव तक चन्द्रमा, सूर्य, समुद्र और तारागण मनुष्योके चित्तोका हरण करते है तब तक धर्मकारीका रचा हुआ सुकीर्तिमय यह सुकीर्तन विजयी रहे। ___ श्लोक ७-बाल्हणके पुत्र महामतिशाली मूर्ति-निर्माता और वास्तुशास्त्रके ज्ञाता श्रीमान् पापट हुए। उन्होने इस प्रतिविम्बकी सुन्दर रचना की। इस शिला-लेख से कई महत्वपूर्ण वातं ज्ञात होती है। प्रथम पक्ति मे वानपुर का उल्लेख पाया है। यह स्थान टीकमगढ से अठारह मील पश्चिम में अब भी विद्यमान है। तीसरी पक्ति के 'मदनेशसागरपुर' पद से ज्ञात होता है कि उस समय इस स्थान का 'मदनेशसागरपुर' नाम रहा होगा। अहार के तालाब को आज भी 'मदनसागर कहते है । सातवी पक्ति से मालूम होता है कि अगहन सुदो तीज, सवत् १२३७, शुक्रवार को परमद्धिदेव के राज्य में शिल्पशास्त्र के ज्ञाता पापट नामक शिल्पकार ने इसका निर्माण किया था। मूर्ति पर बहुत बढिया पालिश हो रही है । पाठ सौ वर्ष वाद भी उसकी चमक में कोई अन्तर नहीं पाया। अहार मे जितनी मूर्तियां है, उनमें से अधिकाश के आसन पर शिला-लेख है, जिनसे जैनो के अनेक अन्वयो का पता चलता है। इतने अन्बयो का वहाँ पाया जाना इस बात का सूचक है कि प्राचीन समय में यह स्थान अत्यन्त समृद्ध रहा होगा। ये सव मूर्तियाँ पुरातत्व और इतिहास की दृष्टि से वहुत ही मूल्यवान है। उनकी सुरक्षा के लिए वहाँ पर एक सग्रहालय का निर्माण हो रहा है। अब आवश्यकता इस बात की है कि अहार तथा उसके निकटवर्ती ग्रामो की भूमि की विधिवत् खुदाई हो। इसमे लेशमात्र सन्देह नहीं कि वहां पर बहुमूल्य सामग्री प्राप्त होगी। संग्रहालय की नीव जिस समय खुद रही थी उस समय स्फटिक की एक मूर्ति का अत्यन्त मनोज्ञ सिर प्राप्त हुआ। खुदाई होने पर और भी बहुत-सी चीजें मिलेगी। अन्न भी जब तालाव का पानी कम हो जाता है, उसमें कभीकभी मूर्तियां निकल पाती है। इस प्रकार की कई मूर्तियो का उद्धार हुआ है। अहार मे तपोवन बनने की क्षमता है, लेकिन उसके लिए भगवान शान्तिनाथ की मूर्ति के निर्माता पापट जैसे महापुरुषो और उनकी.जैसी वर्षों की तपस्या चाहिये। उस मूर्तिकार की यह अनुपम कला-कृति मानो आज भी कह रही है, “महान कार्य के लिए समान साधना की आवश्यकता होती है। टीकमगढ़ ]
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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