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________________ प्रेमी-अभिनदन-ग्रंथ ६०२ नसुक खनत निकसत पुज हीरन के, जग-मग होति ज्योति जागत विभावरी। हिम है न आतप न पकिल प्रदेश जाहि, विरचि विरचि कर सुरुचि घराघरी॥ नांधी कौन ऊघमन उल्का-पात कप की भराभरी न बाढ़ की तराभरी। कीरति प्रखड धन्य धन्य श्री बुंदेलखण्ड, , ऐसौ कौन देश करै रावरी बरावरी ॥ ध बांकुरे बुदेलन के खगन के खेल देख, ससक सकाय शत्रु होत रन बौना से। धन्य भूमि जहाँ वीर मानत न शक मन, तत्र से, न मत्र से, न जादू से, न टोना से॥ छीने छत्र म्लेच्छन मलीने कर लीने यश, कीने काम कठिन अनेक अनहोना से। जाके सुत होना सुठिलोना मृग-राजन कौं, हँस-हँस बांध लेत मजु मृगछौना से ॥ सुख-भूमि यह, वह नित्य जहाँ, नदियां नव नेह के नीरन की। उपमा नहिं आवत है लखि के, सुखमा कल केन के तीरन की। हरसाव हियो हवारन को, __सरसाव सुगघ समीरन की। वर वैभव का कह हीरन सौं जहाँ छोहरी खेले अहीरन की। मऊरानीपुर ]
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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