SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 641
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेमी-अभिनवन-पथ जिन्ना साहव (मि० मुहम्मद अली जिना) हिन्दुनो और मुसलमानो को दो राष्ट्र कहते है । उस्ताद कहते है कि हम में और हिन्दुओ मे मजहब के सिवाय और क्या फर्क है ? कुछ वर्ष हुए मेरी भान्जी का विवाह खडवा में हुआ। प्रसिद्ध साहित्यिक और नेता ब्यौहार राजेन्द्रसिंह (जवलपुर) के पुत्र इस विवाह के वर थे। विवाह में शामिल होने के लिए मेरे बहनोई श्री श्यामाचरणराय ने (वह भी एक विख्यात लेखक है) उस्ताद को निमन्त्रण दिया । उस्ताद मुझसे पहले ही खडवा पहुँच गए । जव वरात विदा हो गई तो उस्ताद झांसी आने लगे और श्री राय के पास विदा मांगने गए । उन्होने मुझसे पहले ही उस्ताद की विदाई के सम्बन्ध मे बातचीत कर ली थी। मैने श्री राय से कह दिया था कि जो जाने, दे दे। उस्ताद बहुत सन्तोपी है। श्री राय ने बहुत सकोच के साथ उस्ताद से अपने प्रस्ताव का प्राक्कथन किया। उस्ताद समझ गए और बोले, "राय साहब, कह डालिए, आप जो कहना चाहते हो।" श्री राय ने पचास-साठ रुपये के नोट बहुत नम्रता के माथ उस्ताद की ओर बढाए। और भी अधिक नम्रता के साथ उस्ताद ने कहा, "क्या यह विवाह मेरी भान्जी का नहीं था? इस अवसर पर आपका पैसा लेकर कैसे मुंह दिखलाऊँगा?" श्री राय चुप रह गए। चलते समय उस्ताद मेरी वहन के पास गए। उस्ताद ने उनके पैर छुए और दो रुपये भेट करते हुए हाथ जोड कर वोलं, "वहिन जी, मैं तुम्हारा गरीव भाई हूँ। मेरी यह छोटी-सी भेट मजूर करो।" मेरी वहिन ने तुरन्त भेंट लेकर कहा, "भैया प्रादिल, ये दो रुपये दो सौ रुपयो से वढ कर है।" फिर वहिन ने उस्ताद की चादर में कलेवा की मोटी-सी पोटली वांधी और हल्दी-चावल का तिलक लगाया। उस्ताद ने फिर पैर छुए और अभिमान के साथ उस तिलक को झाँसी तक लगाए आए। उस्ताद को झांसी बहुत प्रिय है और वुन्देलखड से वडा स्नेह है। झांसी मे इनके निजी मकान भी है, परन्तु पिता और पितामह के घर धौलपुर में है। इनके और पहले पुरखे गोहद (ग्वालियर राज्य) मे रहते थे। गोहद राजदरवार मे वे गायकी करते थे। गोहद के ग्वालियर के अधीन हो जाने पर वे गोहदनरेश के साथ धौलपुर चले आए। आप गोहद को, चम्बल इस पार होने के कारण, बुन्देलखड मे ही मानते हैं। इसलिए अपने को बुन्देलखडी कहने मे गौरव अनुभव करते है। झांसी के बाहर बहुत दिन के लिए कभी नहीं टिकते। भोपाल मे ढाई सौ रुपये मासिक पर जूनागढ़ की बेगम साहवा के यहां नौकरी मिली। केवल चौदह दिन यह नौकरी की। जहां बैठते थे वहाँ होकर उनके बडे-बडे कर्मचारी निकलते थे। कोई कहता था कि भैरवी गाइए, कोई कहता था, ईमन सुनाइए। एकाध मिनिट के बाद वह शौकीन वहां से चल देता और उस्ताद कुढ़ कर अपना तम्वूरा रख देते। सलामें जुदी करनी पडती थी। एक रात उस्ताद विना चौदह दिन का अपना वेतन लिये गांठ का टिकिट लेकर झांसी चले आये। दिल्ली रेडियो पर गाने के लिए बुलाए गए। कई वार गाया। स्वभावत वहुत अच्छा , परन्तु वहाँ के अधिकारी घर पर गाना सुनना चाहते थे और ग्रामोफोन मे भरना । उस्ताद ने दोनो प्रस्तावो से इनकार कर दिया और रेडियो को धता वतलाई। बहुत थोडा पढा-लिखा होने पर भी यह कलाकार हिन्दी-हिन्दुस्तानी के झगडे को जानता है। उसकी स्पष्ट राय है कि जो भाषा रेडियो पर वोली जाती है वह "मेरी भी समझ मे नही पाती।" तुलसीदास के प्रति उस्ताद की बडी श्रद्धा है। यदि तुलसीदास के साथ किसी आधुनिक कवि की कोई तुलना करता है तो वे वेधडक कह देते है, "वको मत । कहाँ राजा भोज, कहाँ भुजवा तेली।" ___ बुन्देलखड मे हाल ही मे ईसुरी नाम का एक कवि हुआ है। इसकी चार कडी की फागें बहुत प्रसिद्ध है। अपढ किसान, गाडीवान, मल्लाह और मजदूर से लेकर राजा और महाकवियो तक की ईश्वरी पर प्रीति है। इसकी फागें ठेठ बुन्देलखडी में है। उस्ताद इन फागो को वही मधुरता और लगन के साथ गाते है। बुन्देलखड में गायन की
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy