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________________ बुन्देलखण्ड की पत्र-पत्रिकाएँ ५८६ 'श्री शारदा' का प्रथमाक २१ मार्च मन् १९२० को प्रकाशित हुआ था। लगभग तीम अक प्रकाशित होने के वाद प० नर्मदाप्रसाद जी मिश्र ने इसके सम्पादकत्व से अवकाश ग्रहण कर लिया। आपके हट जाने पर पडित द्वारकाप्रसाद जी मिश्र इसके मम्पादक नियुक्त हुए, लेकिन मिश्र जी के मम्पादकत्व में यह पत्रिका मासिक न रह कर त्रैमामिक हो गई और तीन-चार अक निकल कर वन्द हो गई। ४--'लोकमत'-मेठ गोविन्ददास जी के तत्त्वावधान में इसका प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। पडित द्वारकाप्रमाद जी मित्र इसके प्रधान सम्पादक थे। इसके प्रकाशन मे हिन्दी के दैनिक पत्रो मे तहलका मच गया। कलकत्ते का दैनिक 'विश्वमित्र' आज जिम वृहत् रूप में प्रकाशित होता है, 'लोकमत' ऐसे ही विशाल स्प में मोलह पृष्ठ का भारी कलेवर लेकर प्रतिदिन प्रकाशित होता था। यह राष्ट्रीय जागरण का प्रवल समर्थक था। "विन्ध्य-शिखर से गीर्षक स्तम्भ की सामग्री पढ़ने के लिए जनता लालायित रहती थी। इस स्तम्भ मे हास्य का पुट देते हुए राजनैतिक हलचलो का जो खाका खीचा जाता था, वह आज भी हिन्दी के किसी दैनिक अथवा साप्ताहिक मे दुर्लभ है। इस पत्र के सम्पादकीय विभाग में भारत के विभिन्न प्रान्तो के लगभग एक दर्जन प्रतिभागाली पत्रकार काम करते थे। इन पक्तियो के लेखक को भी पत्रकार-कला का प्रारम्भिक पाठ पढने का सौभाग्य इसी दैनिक पत्र के मम्पादकीय विभाग मे प्राप्त हुआ था। लेकिन मध्यप्रान्त की अनुर्वर भूमि पर ऐमा अप्रतिम दैनिक भी जीवित न रह सका । प्रान्त के लिए यह लज्जा-जनक बात है। सन् १९३१ के राष्ट्रीय आन्दोलन में मिश्र जी और बाबू साहब के जेल चले जाने पर महीनो तक मांसें लेने के बाद 'लोकमत' का प्रकाशन वन्द हो गया। ५-'प्रेमा'-'श्री शारदा' के वाद 'प्रेमा' का प्रकाशन हुआ। सन् १९३१ मे वह श्रीयुत रामानुजलाल जी श्रीवास्तव के सम्पादकत्त्व में निकली। प्रारम्भ में कुछ समय तक श्रीवास्तव जी के साथ-साथ श्री परिपूर्णानन्द जी वर्मा भी इसके सम्पादक थे और अन्तिम समय में मध्यप्रान्त के सुपरिचित कवि और 'उमरखैय्याम' के अनुवादक प० केशवप्रसाद जी पाठक इसका सम्पादन करते थे। हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखको की रचनायो से जहाँ 'प्रेमा' का कलेवर अलकृत रहता था, वहाँ प्रान्त के उदीयमान कवियो और लेखको की कृतियों को भी इसमें यथेष्ट स्थान दिया जाता था। इसमें सन्देह नहीं कि जवलपुर के अनेक प्रतिभा सम्पन्न कलाकारो के निर्माण में 'प्रेमा' का वडा हाथ रहा। काव्य-शास्त्र में प्रतिपादित नौ रसो पर एक-एक उपादेय विशेपाक निकालने की दिशा में 'प्रेमा' का प्रयत्न स्तुत्य था। लेकिन हास्य, शृगार और करुणरस के भी विशेपाक पारगत साहित्यिको के सम्पादकत्त्व में प्रकाशित करने के बाद 'प्रेमा' का प्रकाशन भी बन्द हो गया। श्रीवास्तव जी ने 'प्रेमा' के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था, लेकिन प्रान्त इस मासिक पत्रिका को भी जीवित न रख सका। ६-'पतित-वधु-श्री वियोगी हरि जी और श्री नाथूराम जी शुक्ल के सम्पादकत्त्व में हरिजन-आन्दोलन के समर्थन में 'पतित-बन्धु' का साप्ताहिक प्रकाशन भी काफी समय तक होता रहा। श्री व्योहार राजेन्द्रसिंह जी का सहयोग इसे प्राप्त था। लेकिन 'चार दिनो की चांदनी, फेर अंधेरी रात' वाली उक्ति इसके साथ भी चरितार्थ होकर ही रही। ७-'सारथी-प० द्वारकाप्रसाद मिश्र के सम्पादकत्त्व में सन् १९४२ में इस साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया गया था। हिन्दी के श्रेष्ठ साप्ताहिको में इसकी गणना होती थी, लेकिन अगस्त १९४२ के आन्दोलन में मिश्र जी के जेल चले जाने पर श्री रामानुजलाल जी श्रीवास्तव ने कुछ महीनो तक इसका सम्पादन-भार ग्रहण कर उमे जीवित रखने का भरसक प्रयल किया, परन्तु परिस्थितियो ने उनका साथ नहीं दिया और यह साप्ताहिक भी वन्द हो गया।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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