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________________ बुन्देलखण्ड की पावन भूमि स्व० 'रसिकेन्द्र' , , झाकी 2 , उर्वरा भव्य धरा है यहाँ की, छिपे पडे रत्न यहाँ अलबेले मुण्ड चढे यही चण्डिका पै, उठ रुण्ड लडे है यहीं असि ले ले । खण्ड बुन्देल की कीर्ति श्रखण्ड, बना गये वीर प्रचण्ड बुंदेले, ल के सकट खेल के जान पै, खेल यहीं तलवार से खेले ॥१॥ शाह भी टीका मिटा न सके, हुई ऐसे नृपाल के भाल की झाकी युद्ध के पडितो के बल-मडित की भुजदण्ड विशाल की झाकी । पाई यहीं पर धर्म- धुरीण प्रवीण गुणी प्रणपाल की है जगती जगती में कला, करके कमला करवाल की झाकी ॥२॥ श्राते रहे भगवान समीप ही, ध्यानियो का यहाँ ध्यान प्रसिद्ध हैं। पुत्र भी दण्ड से त्राण न पा सका, शासकों का नय-ज्ञान प्रसिद्ध है । हीरक-सी मिसरी है जहाँ, वहाँ व्यास का जन्म स्थान प्रसिद्ध है, वश चल की प्रान प्रसिद्ध है, ऊदल का घमासान प्रसिद्ध है ॥३॥ स्वर्ण- तुला चढ् वीरसिंह देव ने दान की प्रान लचा दी ha पं पालकी ले छत्रसाल ने सत्कवि-मान की धूम मचा दी । राग में माधुरी श्रा गई, 'ईसुरी' ने अनुराग की फाग रचा दी काव्य-कलाधर केशव ने, कविता की कला को स-भोज जचा दी ॥४॥ स्वर्ग में सादर पा रहा श्राज भी, भावुक मानसो का अभिनन्दन दर्शन देते रहे जिसको तन धार प्रसन्न हो मारुति-नन्दन । पावन प्रेम का पाठ पढा दिया, प्राण-प्रिया ने किया पद-वन्दन, " " 1 वाले " वाले । प्राप्त हुई तुलसी को रसायन, रामकथा का यहीं घिस चन्दन ॥ ५ ॥ पाये गये हरदौल यहीं, विष टक्कर से नहीं डोलने सन्त, प्रधान, महान यहीं हुए, ज्ञान कपाट के खोलने मृत्यु से जो डर खाते न थे, मिले सत्य ही सत्य के बोलने भाव-विहारी बिहारी यही हुए, स्वर्ण से दोहरे तोलने अचल में हरिताभ लिये तने, वेत्रवती के वितान को गूंज पहूज की कान में गूंजती, पचनदी के मिलान को कृत्रिम - रत्न- प्रदायिनी केन की, शान को देखा, धसान को देखा द्वार में भानुजा के सजे निर्मल, नीलम-वेश - विधान को देखा ॥७॥ राम रमे वनवास में लाकर, है गिरि को गुरुता को बढाया ; पादप पुज ने दे फल-फूल, किया शुभ स्वागत है मनभाया । 7 राम लला की कला ने यहीं, अचला बन के है प्रताप दिखाया 1 जीवन धन्य हुआ 'रसिकेन्द्र' का, पावन भूमि में जन्म है पाया ॥८॥ उई ] वाले 2 वाले ॥६॥ देखा 1 देखा ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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