SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 619
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेमी अभिनंदन - प्रथ २. द्वितीय भाग श्री शिवसहाय चतुर्वेदी प्रथम भाग के लेखक महोदय ने दक्षिण बुन्देलखण्ड के अग्रेजी जिलो के ऐतिहासिक तथा दर्शनीय स्थानो का वर्णन लिख देने की हमे अनुमति प्रदान की है । अतएव यहाँ उनका सक्षिप्त वर्णन दिया जाता है। एरन - सागर जिले के बीना जक्शन से नैऋत्य कोण पर ६ मील और खुरई स्टेशन से वारह मील वायव्य कोण पर बीना नदी के किनारे बसा है । बीना नदी इसे तीन ओर से घेरे हुए है। सौन्दर्य दर्शनीय है । सागर जिले का यह सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक स्थान है। आज से लगभग पन्द्रह-सोलह सौ वर्ष पहले सम्राट समुद्रगुप्त इस स्थान के सौन्दर्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने एरन को अपना 'स्वभोग नगर' बनाया। प्राचीन खडहरो से मालूम होता है कि पहले यह वहुत बडा नगर रहा होगा । ५८० यहाँ पर चतुर्थ शताब्दी का एक खडावशेष विष्णुमन्दिर है। विष्णु भगवान की विशाल मूर्ति अव भी विद्यमान है । मन्दिर के प्रागण मे सैतालीस फुट ऊँचा पत्थर का एक विजय स्तम्भ है । इसके शिरोभाग के चारो कोनो पर चार सिंह बने हुए है और मध्य भाग मे एक दूसरे से पीठ मिलाये दो स्त्री-मूर्तियाँ खडी है । स्तम्भ की कारीगरी कलापूर्ण है । इस स्तम्भ पर लिखा है- "सन् ४८४ ई० मे बुधगुप्त के राज्य में मातृविष्णु और धन्यविष्णु दो भाइयो ने जनार्दन के हेतु खडा किया ।" विष्णुमूर्ति के पास एक बहुत ही सुन्दर और विशाल वाराह मूर्ति है । यह ग्यारह फुट ऊँची और साढ़े पन्द्रह फुट लम्बी है । इसके वक्षस्थल पर भी एक गिलालेख है जिससे मालूम होता है कि धन्यगुप्त ने इसे हूण राजा तोरमाणाशाह के राज्य के प्रथम वर्ष मे वनवाया था।' धामोनी - विन्ध्याचल पर्वत की ऊँची टेकडी, पार्वत्य शोभा-युक्त विशालकोट, रम्य वनस्थली, केतकी फूलो की मोहक - महक और खुदे हुए शिलाखडो पर बहने वाले सुन्दर निर्भरो की छटा एव कल-कल निनाद सहज ही धामौनी की छाप हृदय पर डाल देते है । यह वही घामौनी है, जो बादशाह जहाँगीर के समय उन्नति की चरम सीमा को पहुँच चुकी थी । हाथियो का बाजार भी उस समय यही भरता था । वादशाह औरगजेब ने सन् १६७६ ई० में यहाँ एक मसजिद बनवाई, जो 'औरगजेब की मसजिद' के नाम से प्रसिद्ध है । सेसाई और इशाकपुर दो गाँव अब भी मसजिद की तेल-वत्ती के खर्चे को लगे हैं । सम्राट अकबर के प्रसिद्ध वजीर अबुलफजल को जन्म देने का सौभाग्य इसी भूमि को प्राप्त हुआ था। उनके गुरु बालजतीशाह और मस्तानशाहबली के मकवरे अब भी उनकी स्मृति गाथा गा रहे है । यह सुन्दर नगरी अब खडहरो में परिणत हो गई है । मडला के राजा सूरतशाह का बनवाया किला श्रव खडहर के रूप मे खडा है । चारो ओर की १५ फुट चौडी श्रोर ५० फुट ऊँची दीवारो का कोट और चारो कोनो की चार सुदृढ बुर्जे और ५२ एकड की अन्तस्थली वाला मजबूत किला है। इसमें एक मील की दूरी के ताल से नल द्वारा पानी लेने का प्रवन्ध था । इस दुर्गं को ओरछा नरेश श्री वीरसिंह जू देव प्रथम ने अपने अधिकार में कर लिया था । धामौनी की सैकडो मसजिदो, कवरो और महलो के ध्वसावशेष आज भी मौजूद है । यह स्थान सागर से २८ मील उत्तर की ओर वडा तहसील मे झाँसी की पुरानी सडक पर है । विनायका -- सागर जिले के अन्तर्गत वडा से १० मील पश्चिम में है। नगर और बाकरई नदी के बीच के मैदान मे १७ - १८वी सदी के कई सुन्दर स्मारक बने हुए है । यहाँ २० फुट ऊँचा पत्थर का विजय स्तम्भ भी है । स्तम्भ का शिरोभाग चौकोण और सुन्दर कारीगरी से परिपूर्ण है । इन विजय स्तम्भो को लोग इस तरफ भीमगदा कहते है । 'देखिए, रायबहादुर हीरालाल कृत 'सागर-सरोज' हिन्दी गजेटियर ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy