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________________ १६० प्रेमी-अभिनदन-प्रथ प्रीति सरितूं वरवहू ए कसार आरोगइ, अणू असी डाढडो य गलइ ए तेणइ गधि सजोगिइ, लाधा लाष तुरीय, सहिस गयमर मदि माता, मणि माणिक सोवन्न असष्य, सउ गाम वसतां, सवि पहिर्या, सवि ऊढीमा ए वर जान चलावइ, सघ देश लगइ भीमराय वउलावा प्रावइ, भणइ भीम, 'दवदती, वछि, नलसिउ नेह पाले, सइयणि, धोबणि, अधम जाति मालणि सग टाले; जीणइ प्रिय परसोइ ए ते वात म करजे, सुषि दुषि प्राविया प्रिय तणइ एतू पाय अणसरजे, वउलावी वलिउ भीमराय कुंडनपुरि पहुनु, नल पहुतु दववती सहित निषधई गहिगहित, (ढाल वीवाहलानु) नियरि पुरि हुइ वधामणा ए, वर नितु नितु भावइ भेटणा ए, आढण पाणी छाडती ए, दवदती मदिर प्रापती ए; नव लख सोना सिउ नमइ ए, तीणइ सासूनइ वहूयर प्रति गमइ ए, पाय पडती द्रव्य परखती ए, तीणइ गोत्रनी नारि सवि हरपती ए। पुत्रवती प्रियसिउ मिलीए, 'वहू, जीवजे कोडि दीवालडी ए !' दस दिन हुई दसाईया ए, तीणइ मायताय बिहु हरषीमा ए; निषध भणइ, 'नल कहिउ कीजइ, राजनउ भार जउ उद्धरीजइ, . व्रत लेसिउ अम्हिइ सहीइ ए, तप करिवउ वन कासगि रही ए; बलि करी राज सो पापीउए, नल राजनइ भार सउ थापीउ ए, देइ सीखामण निषध तात, 'वत्स, वेसि सउ नरवर, म करि घात; सात विसन तइ टालिवा ए, छ दरसिणि रूडी परि पालवा ए, राय राज रूडी परिइ ए, नवइ करि कोइ र पीडीइ ए, गुरुजन तइ न विलोपिवा ए, जिणमदिर प्राघाट पारोपिवा ए, देइ सीखामण चालीउ ए, नल राजनउ भार स पापीउ ए, कूबर बुद्धि कूडी करइ ए, नलना पग भगतइ प्रणसरइ ए, आराधह एक कापडी ए, कूवरनइ विद्या सापडीइ ए, कूबर कहइ, 'नल, कहिउ यकीजइ, एह अथिर लच्छी तणु भोग लीजइ, प्रालि माहिइ भव काई गमु ए ? हिव सार पासे सरिसा रमाए, रमतला राज हरावीउ ए, दववतीय विसन नवारीउ ए, हारि प्रागलि साभलइ नहीं ए, दववतीय तु पाछी रही ए, कूवरि सहूइ हरावीउ ए, दवदतीय सूथ करावीउ ए, । दवदती जीती देवरि ए; कूबर कहइ, 'जाउ अतेउरि ए, एक रय मुहते अपावीउ ए, नल दवदती सरिसउ चलावीउ ए,
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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