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________________ ऐतिहासिक महत्व की एक प्रशस्ति ५५३ सघपति राजमल्ल की उस पत्नी के चन्द्र की कला जैसे उज्ज्वल दानशील इत्यादि असख्य उत्तम गुणो की प्रशसा करने में कौन पडित समर्थ है ? || ३५॥ श्रीर- जिसका निर्मल चरित्र देख कर उसे भ्रष्ट करने में असमर्थ चन्द्र स्वय खेदपूर्वक प्रतिदिन एक-एक कला से क्षीण होता जाता है ||३६|| जो अपने धन के व्यय से सघभक्ति, गुरु-सेवा, ग्रन्थो का लिखवाना, तीर्थों का पय्यंटन, इत्यादि पुण्यकार्य हर्षपूर्वक करती थी तथा अन्य अनेक प्रकार के पुनीत कार्यों में सलग्न रहती थी, जो बडे आनन्द से अष्टकर्म के नाश करने वाले पौषध, आवश्यक प्रमुख धर्म - कृत्य और शरीर की सातो धातुओ में धर्मामृत का सिंचन करती थी, जो परलोक में अगणित धन प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने द्रव्य रूपी बीज को विपुल परिमाण में उत्तम भावना पर्वक आनन्द से सातो क्षेत्रो में बोती थी, उस श्राविका वर्ग में श्रेष्ठ देमाई ( श्राविका ) ने वही पाटण में भव्यो के लिए कल्पवृक्ष रूपी उन गुरु का इस प्रकार धर्मोपदेश सुना ।। ३७-४०।। जैसे कि- जो मनुष्य इस ससार में जिनागम लिखवाते है, वे दुर्गति को प्राप्त नही होते, न मूकता को, न जडता को और न अन्धेपन को न बुद्धिहीनता को ॥४१॥ जो धन्यपुरुष जैनागम लिखवाते है वे सर्वशास्त्र को जान कर मोक्षमार्ग को प्राप्त करते है, इसमे सन्देह नही ॥४२॥ मनुष्य सर्वदा पढता है, पढाता है और पढने वाले की पुस्तक इत्यादि चीज़ो से सहायता करता है, वह यहाँ सर्वज्ञ ही होता है ॥ ४३ ॥ विशेषकर जो उद्यमशील मनुष्य श्री वीर भगवान द्वारा कहे गये कल्पसूत्र के सिद्धान्त ग्रन्थ लिखवाते हैं वे अवश्य ही श्रानन्द स्वरूपी लक्ष्मी के समीपवर्ती होते है ॥ ४४ ॥ इनकी इस प्रकार की उपदेशवाणी को सुन कर चिरकालीन महापाप के उदय को काटती हुई वह श्रागमलेखन आदि धर्म-कृत्यों में विशेष रूप से आसक्त हुई ||४५|| पश्चात् श्री स्तम्भ तीर्थ (खम्भात) नामक श्रेष्ठ नगर में सवत् १४३७ की साल में बहुत से धन का व्यय करके कल्याण रूपी लक्ष्मी के लिए देमाई ने कल्पसूत्र का ग्रन्थ लिखवाया ॥४६॥ जब तक शेषनाग सिर पर पृथ्वी को धारण करता है और जब तक सूर्य-चन्द्र ससार में उदित होते हैं तब तक श्रेष्ठ पडितो द्वारा पढा जाने वाला कल्पसूत्र का यह श्रेष्ठ ग्रन्थ जय पायेगा ॥ ४७ ॥ सोमसिंह द्वारा लिखित और देईयाक द्वारा चित्रित प्रशस्तियुक्त यह कल्पसूत्र युगपर्य्यन्त वृद्धिगन्त हो ॥ ४८ ॥ कल्पसूत्र की प्रशस्ति समाप्त अहमदाबाद ] ७०
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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