SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 586
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५१ ऐतिहासिक महत्व की एक प्रशस्ति गजाश्री ने जिसे सम्मान प्राप्त हुआ है और जो मज्जनो को ग्राश्रय देने वाला और अनन्त पाप का हरण करने वाला है, जिसकी व्वजाएँ फहरा रही है, जो अनेक विशाल पर्वो मे सुशोभित है, ऐसे उकेश नामक वश में चमकते मोती के समान मद्गुणों के समूहों का भडार श्रावको में अग्रणी और पुण्यगाली श्रीमान वीना नामक महान पुरुष हुआ ॥४॥ तीन लोक मे जिनकी कीर्ति व्याप्त हुई और जो पुण्य कार्यों की साक्षात मूर्तिरूप है, ऐमा भोजा नामक उसका पुत्र हुआ । उसे भी भिक्षुको के ममुदाय को लाखो का दान देने वाला उदार हृदय लक्ष नाम का पुत्र प्राप्त हुश्रा ॥५॥ उसके मारे ममार में श्रद्भुत सौभाग्यशाली पोपट (खोखट ) नाम का पुत्र हुआ । उसके तीन स्त्रियाँ थी -- (१) खीममिरि ( मुख्य पत्नी), (२) तारु और (३) पाल्तु ||६|| गुण के गौरव से शोभायमान और अत्यन्त कीर्तिवान उनके तीन पुत्र हुए। ( १ ) गाँगा, (२) कामदेव श्रीर (३) वामदेव ||७| गांग के गुणश्री नाम की पत्नी थी और कामदेव की पत्नी का नाम कर्पूरार्ड था |८|| गांगा के वडा ही वैभवशाली और प्रसिद्ध एव महिमावान मधपति राजा नाम का पहला श्रेष्ठ पुत्र हुग्रा और दूसरा पुत्र नाथु नाम का हुआ । देवगिरि में रहने वाला राजाओ का मान्य यह सघपति राजा श्रीसघ की भक्ति आदि अनेक प्रकार के पुण्य कार्य करता था ॥६॥ इस घोर कलियुग में भी भिक्षुको में वारीण के मदृश धन को पानी के समान वहाने वाले उस मघपति ने श्री अजय, गिरनार, श्रावू, श्रन्तरीक्ष जी, जीरावला जी, कुलपाक जी यादि प्रमुख तीर्थों की यात्रा श्रानन्दपूर्वक की थी ॥१०॥ इस प्रकार के अनेको उत्मवो के द्वारा उस मवपति ने जैन शामन को ऐसे प्रकाशमान किया जैसे सूर्य अपनी चमकती किरणों को फैलाकर आकाशमंडल को प्रकाशित करता है ॥ ११ ॥ और aha नामक निर्मल वश में श्रावको का प्रवान समस्त पडितो का मान्य धन्यवाद का पात्र जयसिंह नाम का निको में गुया हुआ । उसके पश्चात् श्रपने प्रभाव से समस्त खलपुरुषो के समूह को दाम बनाने वाला जयसिंह नाम का पवित्र पुत्र उत्पन्न हुआ ॥ १२ ॥ उसके श्रद्भुत लक्ष्मी वाला जैन धर्मानुयायी लक्ष्मीवर नाम का पुत्र पैदा हुआ। उसकी पत्नी मनोहरगुणरूपी जल के कूप के समान रूपी नाम की थी ॥ १३॥ पुण्य सयोग से उनके हरराज, देवराज और खेमराज नाम के तीन पुत्र उत्पन्न हुए || १४ || हरराज के धर्म-कर्म में निपुण, चन्द्र की उज्ज्वल कला जैमी शीलव्रत वाली हॉमलदे नाम की पत्नी थी ॥ १५॥ उसके नरपति, पुण्यपाल, वीरपाल, महमराज और दाराज नामक पाँच वडे भाग्यशाली पुत्र हुए और देमाई नाम की एक कन्या हुई ॥१६, १७॥ देमाई सघपति राजा की धर्मपरायणा पत्नी थी, विष्णु की लक्ष्मी, इन्द्र की शची अथवा महादेव की पार्वती के मदृ ॥ १८ ॥ उनके माँगने वाले के लिए कल्पवृक्ष के समान' (१) मारग नाम का, (२) जिमने श्रविरल श्रोदार्यरूप लक्ष्मी ने कुबेर को परास्त किया है, ऐसा रत्नसिंह नाम का, (३) सहदेव और (४) श्री तुकदेव नाम के प्रख्यात चार चतुर पुत्र हुए ||१६|| श्रीर उनके (१) तील्हाई, (२) पल्हाई, (३) रयणार्ड और (४) लीलाई नाम की गुणी के समूह की भाजन चार पुत्रियाँ थीं ||२०|
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy