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________________ ऐतिहासिक महत्त्व की एक प्रशस्ति श्री साराभाई मणिलाल नवाव मेरे मग्रह में मवन् १४७३ की श्री स्तम्भनीर्थ (खम्भात) मे धर्मघोपमूरि विरचित 'कालिकाचार्य कथा' की तेरह पृष्ठ की एक हस्तलिखित प्रति है । उसके नवे पृष्ठ की आठवी पक्ति से तेरहवें पृष्ठ तक अड़तालीन श्लोक की एक सुन्दर प्रगन्ति है। उसके पैतालीमवे श्लोक में प्रति लिखवाने तथा उसे चित्रित कराने के वर्ष का और जहां वह लिखी गई थी उम नगर का उल्लेख है। सैतालीमवें श्लोक में उम प्रति के लेखक मोमसिंह और उसके लिए पांच चित्र बनाने वाले चित्रकार देईयाक का नाम भी दिया हुआ है। चित्रकार का नामोल्लेख इम प्रति की विशेषता है। इस प्रशस्ति में श्वेताम्बरीय जनतीर्थ जैसे गत्रुजय, गिरनार, पाबू, अन्तरीक्ष जी, जीरावला और कुल्पाक का उल्लेख है, जो जैनतीर्थों के इतिहास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जैन-मडारी में सुरक्षित हजारो ग्रन्यो मे मे शायद ही किसी अन्य के अन्त मे ऐसी सुन्दर एव विस्तृत प्रशस्ति मिलनी हो। अत बहुमूल्य ऐतिहामिक मामग्री से परिपूर्ण इस प्रशस्ति को हम यहां मूलरूप मे उसके अनुवाद सहित देते है और आशा करते है कि पाठको के लिए वह लाभदायक सिद्ध होगी। मूल प्रशस्ति इस प्रकार है प्रशस्तिः पदत्रयी यस्य विभोरशेषतो विष्णोरिव व्याप जगत्रयीमिमाम् । सद्भुतवस्तुस्थितिदेशक सता श्रीवर्द्धमान. शिवतातिरस्तु ॥१॥ गणमणि लसदविलंब्धि लक्ष्मीनिधान गणघरगणमुल्य शिष्यलक्षप्रधानम् । शम-दमकृतरगो गौतम श्रीगणेश किसश (किश)लयतु शिवश्रीसगम शाश्वत व ॥२॥ विद्वन्मन कमलकोमलचक्रवाले या खेलति प्रतिकल किल हसिकेव । ता शारदां सकलशास्त्रसमुद्रसान्द्र पारप्रदा प्रणमता वरदा च चन्दे ॥३॥ भू भू (भल्लवप्रतिष्ठे श्रितसुजनकृतोऽनन्तपापापहारे प्रेसच्छाखाविशेषे विपुलपरिलसत्सर्वपर्वाभिरामे। उकेगाहवानवशे समजनि सुकृती व्यक्तमुक्तायमान श्रीमान् धीनाऽभिधान सुगुणगणनिधिर्नायक श्राद्धघुर्य ॥४॥ तस्याऽङ्गजोऽजनि जगत्रयजातकोति ___ नाऽभिध सुकृतसततिमूर्तमूत्ति । तस्यापि याचककदम्बकदत्तवित्त लक्षश्च लक्ष इति पुत्र उदारचित्त ॥५॥
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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