SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 572
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मराठी में जैन साहित्य और साहित्यिक ५३७ (८) "ऋषभदेव ही जैन धर्म के संस्थापक " ( प्रवध) । चपतराय जी के अग्रेजी ग्रथ के आधार पर लिखा हुआ प्रवच । (e) " ओरियटल लिटरेरी डाइजेस्ट मामिक का विहगमावलोकन", "महाकवि पुष्पदत के अपभ्रंश भाषा यदि पुराण ग्रथ का परीक्षण", "अपभ्रंग भाषा के सुभाषित", "जैनधर्म तथा सुधारणा", "साहित्यक्षेत्र मे सोलापुर प्रातका कार्य", "भगवान महावीर की जनमान्यता", "विश्वोद्धारक तथा जैन धर्म सरक्षक महावीर" "चिंतामणराव वैद्य के जैनधर्म पर आक्षेप और उनका निरमन", "जैनधर्म - ग्रास्तिक या नास्तिक ?” आदि स्फुट लेख । इनके सिवा 'जैन धर्म का इतिहास' नामक ७०० पृष्ठी का ग्रथ तथा 'महावीर और टाल्स्टाय' नामक ग्रथ प्रकाशित है । श्री ० ० ० नाद्रे ने रा० भ० दोगी तथा प्राचार्य गाति सागर के चरित्र प्रकाशित किये है । सन् १९३७ में श्री वीरग्रथमाला नामक एक प्रसिद्ध सस्या जैनियो के ख्यातनामा कवि अप्पा साहेब भाऊ मगदुम 'वीरानुयायी' ने स्थापित की है । आजतक इस ग्रथमाला से २० पुस्तके प्रकाशित हुई है । अहमदावाद रामकृष्ण मिशन के मी० कातावाई वालचद जी० ए० ने 'श्रमण नारद' नामक कथा का अनुवाद प्रेमीजी की मराठी कथा से किया है । यह कथा 'सत्यवादी' मे १६३६ में मराठी में प्रकाशित हुई । उदार प्रकाशक श्री ठाकारे इसे जल्दी ही प्रकाशित करने वाले है | जैनो की सुप्रसिद्ध कवियित्री सो० सुलोचनावार्ड भोकरे की 'जैन महाराष्ट्र लेखिका' तथा 'दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा का इतिहास' नामक दो पुस्तकें सदर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोगी है । आपकी कविताएँ प्रसादपूर्ण हैं । आपकी काव्यसपत्ति की प्रशसा साघुदास ने की है । ० मिसीकर नरेंद्रनाथ जयवत की 'वालवोधिनी' तथा 'जैन सिद्धान्तप्रवेशिका उसी प्रकार दा० वा० पाटील का 'तत्त्कार्यमूत्रप्रकाशिनी' नामक ग्रथ कठिन विषय को सुगमता से समझाने वाले ग्रंथो के उत्तम उदाहरण है, दे० भ० वावा जो लट्टे ने दो पुस्तके अग्रेजी में लिखी है— एक कै० गाहु छत्रपती, कोल्हापुर की जीवनी, दूसरी जैनिज्म । कविवर्य तथा श्रेष्ठ उपन्यासकार कं० दत्तात्रय भिमाजी रणदिवे की साहित्यसेवा वृहत्महाराष्ट्र में विख्यात है । उन्होने चार स्वतत्र तथा वीस अनुवादित उपन्यास, दो प्रहरून, एक कीर्तन तथा वारह खडकाव्य लिखे है । जिनमे मे गजकुमार, चरितसुवार, निलीचरित्र, आर्यारत्नकरडक, अभिनव काव्यमाला में श्री केळकर द्वारा सपादित होकर हैं तथा कविता भाग १ उनके सुपुत्र प्रभाकर ने प्रकाशित किया है। दूसरा भाग भी वे जल्दी ही प्रकाशित करेंगे । चांदवड की महाराष्ट्र - जैन- माहित्य प्रकाशन समिति ने "भारतीय प्रभावी पुरुष" नामक चरित्रात्मक ग्रंथ में श्रावक शातिदास, हरिविजय जी सूरि तथा तेईसवे पार्श्वनाथ तीर्थकर की तीन जीवनियाँ सुन्दर शैली में प्रकाशित कर मराठी साहित्य मे नवीन योगदान किया है । र० दा० मेहता तथा शा० खे० शाह नामक दो उदीयमान लेखक भी महाराष्ट्र को जैन मस्कृति का परिचय करा रहे हैं । कुन्युमागर ग्रथमाला मे (१) लघुबोवामृतसार (२) लघुज्ञानामृतसार तथा आचार्य कुन्थुसागर विरचित मुवर्मोपदेशामृतमार (प्रश्नोत्तर रूप में) संस्कृत से मराठी में अनुवादित होकर प्रकाशित होने चाहिए । काव्यप्रागण में सोलापुर के माणिक तथा शातिनाथ कटके नामक दो वघुत्रो ने अच्छा नाम पाया है । उन्होने मराठी में जैनपूजन की पद्यात्मक पुस्तक प्रकाशित की है । यह पुस्तक भक्तो के उपयोग की है । इस निवध मे मराठी के जैन साहित्य तथा साहित्यकारो का परिचय वाड्मयोद्यान मे इतस्तत विहार करने वाले भ्रमर की वृत्ति से किया गया है। यदि इसमें किन्ही वडे प्रथकारो का अथवा कलाकृतियो का नामनिर्देश रह गया हो तो उसके लिए वे क्षमा करें । शोलापुर ] ६८
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy