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________________ मराठी में जैन साहित्य और साहित्यिक ५३५ डॉ० ए० एन० उपाध्ये एम० ए० ने लिखी है । जागतिक माहित्य में जिमे स्थान प्राप्त हैं ऐसे कुरल काव्य का मरस अनुवाद भी आपने मराठी में किया है । इस ग्रंथ की भूमिका में प्रो० चक्रवर्ती ने जैनवर्म की प्राचीनता दरसा, कर‍ निम तीर्थकर वीरप्रभु मे कुदकुदाचार्य तक का उद्वोवक, उज्ज्वल तथा प्रभावपूर्ण इतिहास वर्णित किया है। 'पुरुषार्थमिढ्युपाय' नामक प्रथ का मराठी अनुवाद कर इनी 'अज्ञात' कवि ने मराठी काव्य साहित्य को बहुत वडी देन दी है । आर्यावृत्त में यह काव्य रचा गया है । इम पुस्तक को ३४ पृष्ठों की एक भूमिका श्रहिंसा माहात्म्य पर प्रस्तुत लेखक ने लिखी है । श्री हीराचंद अमीचंद शहा ने जैन कथा माहित्य के सुमन चुनकर 'जैनकथा सुमनावली' नामक जय लिखा है । पौराणिक कालीन मुमस्कृत जैन ममाज के कथा माहित्य का नमाज विज्ञान की दृष्टि मे बडा महत्त्व है । आपकी दूमरी कलाकृति है 'यशोधर चरित्र' | सुरस ग्रथनाला नामक प्रसिद्ध लोकप्रिय प्रकाशन के कारण विख्यात श्री तात्याराव नेमिनाथ पागल ने गुणभद्राचार्य कृत उत्तरपुराण पर प्रत्यत परिश्रमपूर्वक दीर्घ अव्ययन मे 'तीर्थकरो के चरित्र' मराठी में लिखे है । इस ग्रंथ से जैन तथा अजैन समाज की प्राचीन संस्कृति पर बहुत प्रकाश पडा है । श्रापका सन् १९१३ में पूना की वमतव्यायानमाला में दिया हुआ जैन धर्म नववी व्याख्यान १९२१ में श्री दी० प्रा० बीडकर ने प्रकाशित किया है । सभा के अध्यक्ष 'आनंद' के मस्यापक वा० गो० आप्टे का भाषण तया प्राप्टे के शका समाधानार्थ श्री हिराचंद नेमिचद द्वारा दिये हुए प्रत्युत्तर आदि भव इसी प्रय में नमाविष्ट है । आपने अपनी माला में जैनेतिहास पर कुछ पुनिकाएँ तथा कुछ उपन्यान भी लिखे । पागल जी के पिता भी अच्छे लेखक और कवि थे । आपकी रत्नत्रयमार्गप्रदीप, पद्यावली तया अभग आदि पुस्तकें लोकप्रिय हुई है । मुरन ग्रंथमाला के कुछ उपन्याम श्री मोतिचद गुलाबचद व्होरा ने लिखे हैं । यही पर जैन माहित्यिको में प्रमुखम्प मे चमकने वाले प्रतिभानपन्न उपन्यानकार श्री वालचद नानाचद गहा मोडतिवकर का उल्लेख विशेष प मे किया जाता है | आपके सम्राट् अशोक, छत्रमाल तथा उपा नामक उपन्यास प्रौढ-प्राजल शैली के कारण तथा चित्ताकर्षक, सालकृत भाषा के लिए प्रख्यात है । 'मम्राट् ग्रशोक' उपन्याम एम० ए० मराठी के पाठ्यक्रम में दूसरी वार रञ्जने ममय निप्पल, रसिक ग्रालोचक प्रा० पगु ने इस उपन्याम की मुक्तकठ मे प्रशमा की हैं । (इन उपन्यामो के अनुवाद प्रेमी जी ने हिंदी में उपलब्ध करा दिये-म० ) तीन उपन्याम तथा 'प्रणयी युवराज' नामक एक नाटक लिखकर श्री गहा ने माहित्यमन्यास क्यों ले लिया, यह एक ऐसी पहेली है, जिसका उत्तर समझ नही प्राता । यशस्वी पत्रकार के रूप में विख्यान श्री वालचंद रामचद कोठारी का 'गीतारहस्य' पर आलोचनात्मक प्रवव उल्लेखनीय है । इन छोटे मे थालोचनात्मक निवव में कोठारी की विवेचनात्मक और प्रखर बुद्धि का परिचय मिलता है । इनके अलावा 'धर्मामृतरसायन' नामक अनुवादित जैनवमं मववी पुस्तिका में भी उनकी भाषापटुता के दर्शन होते हैं । प० नाना नाग ने तत्त्वार्थ सूत्रों का मराठी अनुवाद करके तथा पच परमेष्ठी गुण जैसे वहुत भी उपयोगी पुन्निकाएँ प्रकाशित करके जैनधर्म तथा जैन माहित्य के प्रति प्रेम व्यक्त किया है। उसी प्रकार श्री वालचद कस्तुरचंद धाराशिवकर ने अनेक जैनप्रय प्रकाशित किये है | श्री कृष्णा जी नारायण जोशी ने वर्मपरीक्षा, द्रव्यमग्रह, विक्रमकविकृत नेमिदूत काव्य तया वर्मगर्भाभ्युदय काव्य का मराठी अनुवाद कर जिनवाणी की मेवा की है । वर्मपरीक्षा में पुराणो की कुछ कथाएँ कैमी हास्यास्पद या श्रद्धेय है, इम बात का बहुत मार्मिक विवेचन मिलता है । प० नाथूराम जी प्रेमी ने भट्टारक नामक निवव ऐतिहासिक नामग्री के आधार पर सगोवित करके परिश्रमपूर्वक लिखा है । उनका अनुवाद श्री वा० ज० पाटील ने किया है । कुद-कुदाचार्य कृत 'पट्पाइड' केवलचद हिराचंद कोठारी बुधकर ने प्रकाशित किया । निस्वार्थी प्रकाशक श्री वालचंद कस्तुरचंद उम्मानावाद ने उपर्युक्त कृ० ना० जोगी द्वारा अनुवादित प्रयं तथा श्राचार्य सकलकीर्तिकृत मुभाषितावली तथा मल्लिगेणाचार्यकृत
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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