SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेमी-अभिनदन-प्रय जिनके सुमति जागि, भोग सो भयो विरागी, परसङ्ग त्यागी, जे पुरुष त्रिभुवन सो। रागादि भावन सों जिनको रहन न्यारी कवतुं न मगन रहे घाम घन में। जे सदैव प्रापको विचार सब अङ्ग सुधा तिनके विकलता न व्या कहू मन में। तेई मोखमारग के साधक कहावें, जीव भावे रहो मन्दिर में, भावे रहो वन में। इस पद्य मे मोक्ष-साधक का कितना मनोहर और स्वाभाविक वर्णन है, जिनमे भाव और भापा की पुट भी मन को आकर्षित करती है। अन्य ऐसे अनेक सुन्दर पद्यो मे पूर्ण है। ग्रन्थकार ने अपना परिचय भी इन यन्य में अति विस्तृत रूप से लिखा है । सवाई माधोपुर में आने का कारण दिखलाया है तथा वहां के जिन-मदिर, जैन समाज का जीवन और धार्मिक रुचि का अनूठा चित्र अकिन किया है। राजा और प्रजा के गाट प्रेम का दिग्दर्शन भी वढिया ढग से किया गया है। अन्य की लिपि सुन्दर और मुवाच्य है। प्रति भी अच्छी दगा में सुरक्षित है। १६ हनुमच्चरित्र-यह गन्य न० रायमल्ल जी का रचा हुआ प्रतीत होता है। लेखक ने आचार्य अनन्तकीर्ति द्वारा विरचित सस्कृत हनुमच्चरित्र का आधार लेकर इसका निर्माण किया है। पांच परिच्छेदो मे विभक्त है। भापा प्राचीन हिन्दी प्रतीत होती है। यन्य का प्राकृतिक वर्णन कितना स्वाभाविक और सजीव है सेमर महुया तिन्दुक बेल, बकायन कैथ करील । चोच मोच नारग सुवग, नीबू जामुन वादाम तिलग ॥ अमृतफल, कटहल और कैलि, मण्डप चढि दाख की वेलि ॥ वेर सुपारी कमरख घनी, न्योजा श्राम कनत बिम्बनी ॥ प्रस्तुत पद्य से स्पष्ट प्रतीत होता है कि कवि का व्यावहारिक ज्ञान विगाल था तथा उसे विभिन्न प्रकार के वृक्षो कापूर्ण ज्ञान था। इसी के फलस्वरूप वाटिका के वृक्षो का ललित वर्णन कवि ने किया है। कविराज ने बीच-बीच में सुन्दर नीति विषयक पद्य भी दिये है। यथा-- मित्र मित्र को करे विश्वास । मित्र विना नहि पुरे पास । बहुत आपदा भावे जवै । मित्र परीक्षा मावे तबै ॥ धोरें पावे राजा राज । धीरे खेती उपजे नाज ॥ वोवे वृक्ष धीरे फल खाय । धोरे मुनिवर मुक्तिहिं जाय ॥ वीर वालक का ओजस्वी वर्णन देखिये वालक जव रवि उदय कराय। अन्धकार सव जाय पलाय ॥ वालक सिंह होय अति सूरो। दन्ति घात करे चक चूरो॥ सघन वृक्ष वन अति विस्तारो। रत्ती अग्नि फरे दह छारो॥ जो वालक क्षत्रिय को होय । सूर स्वभाव न छाडे कोय । उपर्युक्त पद्या मे क्षत्रिय वालक को उपमाए वाल-रवि, सिंह-गावक, और एक अग्नि की चिनगारी से दी गई हैं। ये उपमाएँ कवि की अनोखी सूझ की द्योतक है। जैसे अग्नि की चिनगारी प्रारभ मे छोटी होती है, पर अरण्य
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy