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________________ प्रेमी-अभिनदन-प्रय ४७४ प्रबन्ध में इन ग्रन्यो में वर्णित वातो की तुलना जनेतर पुराणो के साथ भी की है एव मुनि धर्मविजय जी ने 'जनभूगोल' के नाम से एक वृहद्ग्रन्य भी प्रकाशित किया है। __ जैनागमो मे देशो के नाम जैनागमो में भगवतीमूत्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण सूत्र है, जिसका अगसाहित्य में पांचवा स्थान आता है। इसके पन्द्रहवें भनक के गोगातक अध्ययन में भारत के सोलह प्रान्तो का नाम निर्देश पाया जाता है। यया १अग, २ वग, ३ मगध, ४ मलय, ५ मालव, अच्छ, ७ वत्स, ८ कोस्त, ६ पाट, १० लाट, ११ वज, १२ मौली, १३ कागी, १४ कोमल, १५ अवाव पीर १६ सभुक्तर। ___ इसी सूत्र में अवें शतक एव नवे शतक के तैतीसवे अध्ययन (देवानन्द के प्रमग ) मे कई वार भारततर अनार्य देशों के नाम पाये जाते है। जैसे वर, वर्वर, ढकण, भुत्तुन, पल्ट और पुलिंद यह : नाम अनार्य जाति के मूचक है । इन जातियो के नाम देगलूचक ही प्रतीत होते है। शक, यवन, चिलान, गवर, वर्वर इन्हें अनार्य या म्लेच्छ वतलाया गया है। देवानन्द के वस्त्रप्रनग में चीनाक (चीन का रेशम) एव विलात देश की दासियो का उल्लेख है। इनी प्रचार प्रीतिदान के प्रसग में पाग्नीक देग की दानियो का निर्देश पाया जाता है। अनार्य देशो म विस्तृत विवरण सूत्रकृनाग, प्रश्नव्याकरण एव प्रजापनासूत्र में है-(१) सूत्रकृताग के पृ० १२३ में शक, यवन, गवर, वर्वर, काय, मुरुड, दुगोल (२) पक्वणक, आत्याक, हूण, रोमस, पारस, खस, खामिक, दुविल, यल(२), वोन (२), वोक्कस, मिल्ल, अन्ध्र, पुलिंद, क्रौंच, भ्रमर, स्थ, कावोज, चीन, चुचुक, मालय (१) मिल और कुलाल यह सव अनार्य देश है। (२) प्रश्न व्याकरण के पृ० १२४ में दान, यवन, वर्वर, शवर, काय, मुरुड, उद भडक, तित्तक, पक्वणिक, कुलाल, गौड, मिह (ल),पारस क्रौंच, ग्रन्ध्र, द्वान्टि, विल्बल, पुलिन्द, अरोप , डोव, पोक्कण, गन्यहारक, वलीक, जल्ल, रोम, माप, वकुश, मलय, चुचुक, चूलिक (बोल' }, कोकण, भेद, पह्नव, मालवा, महुरा, आभापिक, अनक्क (अनक), चीन, ल्हासिक, खस, खासिय, नहर, महाराष्ट्र, माप्टिक, आरव, डोविलक, कुहण, केकय, हुण, रोमक, रुरु, मस्क और किरात, यह सव अनार्य देग हैं। (३) प्रज्ञापना पृ० ५५-- मक, यवन, किरात, गवर, वर्वर, मुरड, उट्ट, भडक, निम्नक, पक्वणिक, कुलाक्ष, गोंड, सिंहल, पारस, गोष, क्रौंच, प्रवड (१) द्रमिल, चिल्लल, पुलिंद, हार (१), ओस, डोव, वोक्कण, अनक्क, अघ्र, हारव, पहलीक, अध्यल, अध्वर, रोम, भाष, वकुश, मलय, वधुक, सूयति (?), कोकण, मेद, पलव, मालव, मग्गर (१), प्राभापिक, कणवीर, ल्हासिक, खस, खासिक, नेहर, भूढ डोविल, गलपोस (२), प्रदोष, कर्कतक, हण, रोमक, हूण, रोमक (१), नरु(मरु), मरुक और किरात, यह सब अनार्य है। प्रज्ञापनासूत्र में २५॥ आर्यदेशो के नाम और उनकी राजधानियो का उल्लेख इस प्रकार है '१ राजगृह (मगध), २ चपा (अग), ३ ताम्रलिप्ति (वग), ४ कचनपुर (कलिंग), ५ वाराणसी (काशी), ६ साकेत 'इसी अन्य के आधार पर 'जन भूगोल' शीर्षक लेख लिख कर मुनि न्यायविजय जी ने सातवीं गुजराती साहित्य परिषद् के अन्य में प्रकाशित करवाया है। देखिए भगवतीसूत्र (प० वेचरदास जी दोशी द्वारा सम्पादित) भा० २, पृ० ५३ ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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