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________________ जैन साहित्य में प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री ४६३ जिनविजय जी द्वारा कई मूर्तिलेख-सग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। दिगम्बर जैन समाज में प्रो० हीरालाल जी द्वारा श्रवणवेलगोल तीर्थ के लेखो का वृहद् सग्रह 'जैन शिलालेससग्रह' नाम से थीमाणिकचन्द्र प्रथमाला बम्बई में प्रकाशित हो चुका है। एक मूर्तिलेख सग्रह वावू छोटेलाल जी ने कलकत्ता से निकाला था और एक मूर्तिलेख संग्रह हमने वर्धा से। हमारे द्वारा सम्पादित एक अन्य मूर्तिलेख सग्रह जैनसिद्धान्त भवन पारा से भी प्रकाशित हुआ है। किन्तु इस दिशा में अभी बहुत कार्य होना शेष है। श्रावको के विविध कुलोको वशावलियां भी उल्लेखनीय है। हिन्दी जैन साहित्य मे भी ऐतिहासिक सामग्री का बाहुल्य है, जो एक दक्ष अन्वेषक की प्रतीक्षा कर रहा है। उसमे कविवर बनारसी दास जी का 'अर्द्धकथानक चरित्रग्रथ भारतीय ही नही, विश्व साहित्य में अनूठा है। इस प्रकार जैन साहित्य मे इतिहास की अपूर्व सामग्री बिखरी हुई पडी है । दक्षिण के जैन कन्नड और तामिल साहित्य मे भी अपारऐतिहासिक मामग्री सुरक्षित है, किन्तु उसके अन्वेषण की आवश्यकता है । तामिल का शिलप्पाधिकारम्' काव्य और कन्नड का 'राजावलीकथे' नामक ग्रथ भारतीय इतिहास के लिए अनूठे ग्रथ-रल है । दक्षिण भारत के जनशास्त्र भडारी का अवलोकन भारतीय ज्ञानपीठ के तत्वावधान में श्री प० के० भुजवली शास्त्री कर रहे है और हम आशा करते है कि शीघ्र ही दक्षिणवर्ती जैन साहित्य के अमूल्य रत्नो का परिचय विद्वज्जगत को उपलब्ध होगा। क्या ही अच्छा हो कि प्रेमीजी के प्रति कृतज्ञताज्ञापन स्वरूप जैनसाहित्यान्वेषण के लिए एक वृहद प्रायोजन किया जावे। अलीगज] अनेकान्त, भा० ६, अक २ में प्रकाशित नाहटा जी का लेख । 'अर्द्धकथानक (बम्बई) की भूमिका देखिये।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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