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________________ ४५४ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ इत्यादि । हेमचन्द्र का योगशास्त्र और शुभचन्द्रका ज्ञानार्णव बहुत लोकप्रिय ग्रन्थ है । और भी अनेक नीतिग्रन्थ है, जिनमें सोमप्रभ के कुमारपालप्रतिवोध, सूक्तिमुक्तावली और शृगारवैराग्यतरगिणी, चारित्रसुन्दर का शीलदूत (१४२० ई०), समयसुन्दर की गाथासहस्री (१६३० ई०) प्रसिद्ध है। लेकिन जैन प्राचार्यों का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है उनकी दार्शनिक सैद्धान्तिक उक्तियां । यह जानी हुई बात है कि इन पडितो ने न्यायशास्त्र को पूर्णता तक पहुंचाया है। कुन्दकुन्द, अमृतचन्द्र, कार्तिकेय स्वामी, उमास्वाति, देवनन्दि, अकलक, प्रभाचन्द्र, वादिराज, सोमदेव, आशाधर आदि दिगम्बर प्राचार्यों ने भारतीय चिन्ता-धारा. को बहुत अधिक समृद्ध किया है । इसी प्रकार श्वेताम्बर आचार्यों मे हरिभद्र, मल्लवादी, वादि-देवसूरि, मल्लिषेण, अभयदेव, हेमचन्द्र, यशोविजय आदि ने जनदर्शन पर महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखी है, जो निश्चित रूप से भारतीय पाण्डित्य की भूपण है । इन दार्शनिक ग्रन्यो के सिवाय जैन सम्प्रदाय के बाहर नाना क्षेत्रो में, जैसे काव्य नाटक, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, कोष, अलकार, गणित और राजनीति आदि विषयो पर भी जैन आचार्यों ने लिखा है। बौद्धो की अपेक्षा वे इस क्षेत्र में अधिक असाम्प्रदायिक है। फिर गुजराती, हिन्दी, राजस्थानी, तेलगु, तामिल और विशेष रूप से कन्नडी, साहित्य में भी उनका दान अत्यधिक है। कन्नड़ी साहित्य पर तो ईसा की तेरहवी शताब्दी तक जैनो का एकाधिपत्य रहा है। कन्नडी के उपलब्ध साहित्य के लगभग दो-तिहाई ग्रन्थ जैन विद्वानो के रचे हुए है। इस प्रकार भारतीय चिन्ता की समृद्धि में यह सम्प्रदाय बहुत महत्त्वपूर्ण है। शातिनिकेतन] - - -
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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