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________________ ४२२ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ इन तीन भाष्यगाथाओ मे से प्रथम भाष्यगाथा द्वारा मूलगाथा के प्रथम चरण का, दूसरी गाथा के पूर्षि से द्वितीय चरण का, और उत्तरार्ध तथा तीसरी गाथा के पूर्व से तीसरे चरण का, तथा तीसरी गाथा के ही उत्तरार्द्ध से मूल गाथा के चौथे चरण का अर्थ-व्याख्यान किया गया है। इस प्रकार एक मूल गाथा का तीन भाप्यगाथायो से अर्थ स्पष्ट किया गया है । इस तरह उक्त गाथाओ में मूल गाथानो और भाष्यगाथाओ का भेद स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जाता है। २ सत्तरी प्रकरण में से मूलगाथा-वावीसमेक्कवीस सत्तारस तेरसेव णव पच । चउ तिय दुय च एय बघट्टाणाणि मोहस्स ॥२५॥ भाष्यगाथा-मिच्छम्मियावावीसा मिच्छासोलह कसाय वेदोय।। हस्सा जुयलेकणिदा भएण विदिए दुमिच्छसद्णा ॥२६॥ पढमचउक्केणित्योरहिया मिस्से अविरयसम्मे य। विदिएणूणा देसे छठे तइऊण सत्तमद्वै य ॥२७॥ अरइ-सोएणूणा परम्मि पुर्वय-सजलणा। एगेगूणा एव दह द्वाणा मोहबधम्मि ॥२८॥ मूलगाथा-अट्ठसु पचसु एगे एय दुय दस य मोहवघगये। तिय चउ णव उदयगवे तिय तिय पण्णरस सतम्मि ॥२६२॥ भाष्यगाथा-सत्त अपज्जत्तेसु य पज्जत्ते सुहुम तह य अट्ठसु य । वावीस वधोदय सता पुण तिष्णि पढमिल्ला ॥२६॥ पचसु पज्जत्तेसु पज्जत्तयसणिणामग वज्ज। हेटिम दो चउ तिणि य बघोदयसतठाणाणि ॥२६॥ दस णव पण्णरसाई वधोदयसतपयडिठाणाणि। सण्णिपज्जत्तयाण सपुण्णा इत्ति बोहव्वा ॥२६॥ विषय से परिचित पाठक भलीभाति जान सकेंगे कि एक-एक मूलगाथा के अर्थ को किस प्रकार तीन-तीन भाष्यगाथाओ द्वारा स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार यह मानने में कोई भी सदेह नही रह जाता है कि प्राकृत पचसग्रहकार ने मूल प्रकरणो के नाम को अक्षुण्ण रखने के लिए ही वही के वही नाम दे दिये है और ये दोनो प्रकरण-ग्रन्थ ही पचसग्रह के चौथे-पांचवें सग्रह के आधार है। (३) शेष अधिकारों के आधारों की छानबीन । प्राकृत पचसग्रह के प्रकृतिसमुत्कीर्तन नामक द्वितीय प्रकरण का आधार स्पष्टत षट्खडागम की प्रकृतिसमुत्कीर्तन नाम की चूलिका है, जो कि मुद्रित षट्खडागम के छठवें भाग में सन्निहित है। इस चूलिका के समस्त
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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