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________________ सुमित्रा दशी श्री बहादुरचद्र छाबडा एम० ए०, पी-एच्० डी० [मैलापुर, मदरास की सस्कृत एकेडेमी ने ८ अप्रैल १९४३ को वाल्मीकि-दिवस मनाया था और घोषणा की थी कि सुमित्रा पर पन्द्रह अथवा उससे कम पदो की संस्कृत की सर्वोत्तम मौलिक रचना पर पुरस्कार दिया जायगा । उसी के लिए श्री बहादुरचद्र जी छाबडा ने 'सुमित्रा पचदशी' शीर्षक पन्द्रह श्लोक भेजे थे, जो पुरस्कार के योग्य निर्धारित हुए थे।-सपादक] जयति सुमित्रा साध्वी पुत्रवतीना ललामभूता सा। लक्ष्मण सदृश वीर जितेन्द्रिय या सुत सुषुवे ॥१॥ राम दशरथ विद्धि मा विद्धि इत्यादि यादिशत्पुत्र सा सुमित्रा महीयते ॥२॥ यमी सुमित्रा तनया वजीजनत्प्रशस्तवीर्यों भुवि यो मनस्विनौ । निजाग्रजादेशवशवदी स्वक कुल कुलीनी प्रथयाम्बभूवतु ॥३॥ लक्ष्मणशत्रुघ्नौ तौ क्रमशो बाल्याद्धि रामभरताभ्याम् । प्रायः सौमित्रगुणरास्ता नखमासवत् स्यूतौ ॥४॥ रामाय लक्ष्मण दत्त्वा शत्रुघ्न भरताय च। कौसल्यामिव कैकेयी सुमित्रारञ्जयत्सती ॥५॥ कैकेयी प्रति मत्सर न भेजे कौसल्या प्रति नाति । दुष्टादुष्टमचिन्वती सपन्यो सौमित्रं समवर्शयत्सुमित्रा ॥६॥ हन्त सुमित्रा व्याजीदुदारताया. परा काष्ठाम् । परकीयेषु निजेभ्य. प्रकाशयन्ती गरीयसीं ममताम् ॥७॥ धन्यासि त्व सुमित्रे कृतमतिकठिन कर्म धम्यं त्वया वै दास्ये सूनो. सपत्न्याश्चिरवनवसति यास्यतो राघवस्य । ज्यायास यत्ययुद्धथा प्रमुदितमनसा लक्ष्मण कुक्षिज स्व यत्सोप्याज्ञा यथावत्तव खलु कृतवास्तेन भूयोसि धन्या ॥८॥ पिता राममेवादिशद्वानवास स्वतन्त्रोपि यल्लक्ष्मणस्तेन साकम् । गतोमुक्त दुःखानि भूयासि साघु सुमित्रोपदेशस्तु तत्राग्यहेतु ॥६॥ कथ बालोम्बाया सरसमुपदेशैर्गुणगण कथ माता कीति सुतगुणमहिम्ना च लभते । सुमित्रा सौमित्री इदमुभयमच्छ विवृणुत' सरस्यम्भोजी वाप्रतिफलितशोभी खलु मिथ ॥१०॥ रामेरण्य यातवत्यार्तिमग्ना कौसल्या यत्सर्वदासान्त्वयत्सा। न्यक्कुर्वाणा स्व विषादं सुमित्रा निर्व्याज तत्सौभगिन्य सपन्याम् ॥११॥ पत्यूराजर्षित्वादृषिपत्न्यो पल्ल्योपि । किन्तु सुमित्रा तासामूषिपन्यासीद्विशेषेण ॥१२॥
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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