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________________ २६२ प्रेमी-अभिनदन-प्रय से प्रति वर्ष प्रत्येक जैन घर से एक हण के हिसाब से कर उगाह कर उस आय में से वेलुगुल तीर्थ के देव की रक्षा के लिये वीस अग-रक्षक नियुक्त करेगे । ये अग-रक्षक वैष्णवो द्वारा अनुमोदित होगे । शेप धन से जीर्ण जिन-मन्दिरो की लिपाई-पुताई और मरम्मत का काम किया जायगा। जब तक चन्द्र-सूर्य है, इसी मर्यादा के अनुसार वे लोग प्रति वर्प देते रहेगे और यश और पुण्य का उपार्जन करेगे। जो इसका उल्लघन करेगा वह राज-द्रोही तथा सघ और समुदाय का द्रोही समझा जायगा । यदि कोई तपस्वी या ग्रामीण इस धर्म की हानि करेगा तो उसे गगा तट पर गो-वध और ब्राह्मण-वध के जैसा पाप लगेगा । कल्लेह स्थान के हव्विश्रेष्ठी के सुपुत्र बुसुविश्रेष्ठी ने वुक्कराय के यहा विनती की और तिरुमलय के तातय्य को बुलाकर पुन शासन का जीर्णोद्धार कराया। दोनो समयो (सम्प्रदायो) ने मिलकर बुसुविसेठ को 'सघनायक' की पदवी प्रदान की ॥ नई दिल्ली] - - - - -
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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