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________________ श्री नाथूराम जी प्रेमी ११ वडा प्रोत्साहन दिया। उन दिनो वे 'जैन-ग्रन्य-रत्नाकर-कार्यालय' चलाते थे और हीरावाग के पास ही चन्दावाडी मे रहते थे। गायद 'माणिकचन्द-जन-ग्रन्थमाला' के भी सचालक थे और 'परमश्रुत प्रभावक मडल' मे भी उनका सम्बन्ध था। इस प्रकार श्री प्रेमीजी से हमारी मित्रता करीव आज सत्ताईस-अट्ठाईस वर्ष से चली आई है और जब तक हमारी चेतना जागरूक है तब तक चलती रहेगी। केवल प्रेमीजी से ही नहीं, अपितु उनके कुटुम्ब के साथ भी हमारे कुटुम्ब की मित्रता वन गई है। प्रेमीजी कुटुम्ब-वत्सल, मूक भाव से क्रान्ति के प्रेरक, सामाजिक कुरूढियो के भजक, स्वच्छ साहित्य के प्रचारक और प्रामाणिक व्यवसायी है। एक बार जब मै अपनी पत्नी के साथ पूने मे था तव प्रेमी जी भी वहां निवास के लिए आये थे। साथ में उनकी पत्नी स्व. रमावहिन और उनका पुत्र स्व. हेमचन्द्र भी था। रमावहिन अत्यन्त नम्र, मर्यादाशील एव कुटुम्ब-वत्मल गृहणी थी और हेमचन्द्र तो मनोहर मुग्ध सतयुग का वालक या। हम दो थे और प्रेमीजी का कवीला तीन व्यक्तियो का था। हम पाँचो जने 'भाडारकर प्राच्य मन्दिर' के पीछे UPL 13 - 11 ETA PRANAAD Ayms . .. AsASK HTTAYEVER WKTA LI स्व० हेमचद्र (१९१२) की पहाडियो पर नित्य प्रात काल घूमने जाते और अनेक प्रकार की वाते होती। अधिकतर सामाजिक कुरूढियो की और धार्मिक मिथ्यारूढियो की चर्चा चलती थी। स्व० हेमचन्द्र भी 'दद्दा दद्दा' कहकर मनोहर वालसुलभ वाते पूछा करता। किमी टेकरी पर चढने मे स्त्रियो को अपनी पोशाक के कारण वाधा आती तो दोनो यानी रमावहिन और मेरी पत्नी कच्छा लगाकर टेकरी पर चढ जाती। उस समय हम लोगो ने जो सुखानुभव किया, वह फिर कभी नहीं किया। प्रेमीजी साहित्य और इतिहास के कीट होने पर भी कितने कुटुम्ब-वत्सल थे, उसका पता वहाँ टेकरी पर ही लगता था। उन दिनो प्रेमीजी 'जैन-हितैषी' चलाते थे। उसमें साहित्य, इतिहास इत्यादि के विषय में बडी आलोचना-प्रत्यालोचना रहती थी। 'जन-हितैषी' के मुख-पृष्ठ पर एक चित्र आता था, जिसमे ध्वज-दड सहित एक देवकुलिका थी और उसके शिखर में रस्सी को फांसकर एक तरफ श्वेताम्वर खीच रहा है, दूसरी तरफ दिगम्वर । यह हाल जैन-ममाज का आज तक भी वैसा ही बना हुआ है। इस चित्र से प्रेमीजी के अन्त स्थित क्रान्तिमय मानम
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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