SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-प्रथो में भौगोलिक सामग्री और भारतवर्ष में जैन-धर्म का प्रसार २५७ ७ कुरु (गजपुर) कुरु (थानेश्वर) की राजधानी का नाम गजपुर अथवा हस्तिनापुर था। कहते है कि यहाँ के शिव राजा को महावीर ने दीक्षा दी थी। गजपुर जैन लोगो का एक प्राचीन तीर्थ माना जाता है। ८ कुशात (शौरिपुर) आनट्ठ (आनर्त), कुसट्ठ (कुशावर्त), सुरट्ट (सौराष्ट्र) तथा सुक्कर? (शुष्कराष्ट्र) ये चार प्रदेश पश्चिमी समुद्र के किनारे अवस्थित थे और वारवई (द्वारका) इनका सर्वश्रेष्ठ नगर था। इससे मालूम होता है कि यह प्रदेश पश्चिम में सौराष्ट्र के आसपास कही होना चाहिए। परन्तु सोरिय अथवा शौरिपुर जमुना नदी के किनारे अवस्थित था तथा शौरि राजा ने अपना मथुरा का राज्य अपने लघु भ्राता सुवीर को देकर स्वय कुशावर्त देश में जाकर शौरिपुर नगर बसाया' और जरासन्ध के भय से शौरिपुर और मथुरा के यादव लोग अपने-अपने नगर छोडकर पश्चिम दिशा मे द्वारका में जाकर रहे इन उल्लेखो से मालूम होता है कि कशावर्त शरसेन के आसपास का प्रदेश होना चाहिए। सम्भव है दो कुशावर्त रहे हो-एक पश्चिम में और दूसरा उत्तर में। जैन-ग्रन्थो के अनुसार शौरिपुर कृष्ण और नेमिनाथ की जन्मभूमि है। प्राचीन तीर्थमाला के अनुसार आगरा जिले में शकुराबाद स्टेशन के पास वटेसर नामक गाँव प्राचीन सौर्यपुर माना जाता है । ९ पाचाल (कापिल्यपुर) पाचाल (रुहेलखड) की राजधानी कापिल्यपुर (कपिल) थी, जो गगा के किनारे अवस्थित थी। प्राचीन काल में पाचाल उत्तर और दक्षिण भागो में विभक्त था। महाभारत के अनुसार उत्तर पाचाल की राजाधानी अहिच्छत्रा थी और दक्षिण की कापिल्य। १० जागल (अहिच्छत्रा) जागल या कुरुजागल की पहचान गगा और उत्तर पाचाल के बीच के प्रदेश से की जाती है। इसकी राजधानी अहिच्छत्रा (रामनगर) थी,जो चम्पा के उत्तर-पूर्व (१) (उत्तर-पश्चिम) में अवस्थित थी। चम्पा और अहिच्छत्रा में परस्पर व्यापारिक सम्बन्ध था। अहिच्छत्रा एक पवित्र स्थान था, जिसकी गणना अष्टापद, उज्जयन्त (रेवतक), गजानपुर, धर्मचक्र (तक्षशिला) तथा रथावर्त पर्वत के साथ की गई है । विविधतीर्थकल्प के अनुसार अहिच्छत्रा का दूसरा नाम शखवती था। यह नगरी प्रत्यग्ररथ अथवा शिवपर" नाम से भी प्रसिद्ध थी। 'भगवती ११६ 'वसुदेवहिंडी, पृ० ७७ 'कल्पसूत्र टीका ६, पृ० १७१ "वही पृ० १७६ "उत्तराध्ययन २२ 'भाग १, भूमिका, पृ० ३८ 'नायाधम्मकहा १५ 'प्राचाराग नियुक्ति ३३५ "अभिधानचिन्तामणि ४.२६ 'वही, पृ० १४ " . टीका ५.१२३ ३३
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy