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________________ कुछ जैन अनुश्रुतिया और पुरातत्त्व २३५ डा० स्पूनर की खुदाई -सम्बन्धी वक्तव्यो की विवेचना करने पर हम निम्नलिखित तथ्यो पर पहुँचते हैं - (१) पाटलिपुत्र में उस समय बाढ आई जव अशोक का महल समूचा खडा था । वाढ से उस पर नौ फुट मिट्टी लद गई । (२) ई० म० की प्रारम्भिक शताब्दियों के सिक्के इत्यादि गुप्त स्तर और रेतीली मिट्टी के बीच में मिलने से डा० स्पूनर ने यह राय कायम की कि वाढ ई० प्रथम शताब्दी या एकाच सदी वाद श्राई होगी। (३) वाढ के वाद भी पुरानी इमारत कुछ-कुछ काम में लाई जाती थी । ग्रन्तिम कथन का समर्थन तित्योगाली द्वारा होता है, जिसमें कहा गया है कि वाढ के बाद चतुर्मुख ने एक नया नगर पुराने को छोड़कर बसाया । श्रव हम देख सकते है कि तित्योगाली ने पाटलिपुत्र को भोपण वाढ का, जो ई० पहली दूसरी शताब्दी में श्राई थी, कैसा उपादेय और विशद वर्णन जीवित रक्ता हैं । तित्योगाली के कल्की-प्रकरण के आरम्भ में ही यह कहा गया है कि कल्की ने नन्दो के वनवाये पाँच जैन- स्तूपो को गढे घन की खोज में खुदवा डाला । युवान च्याग इस कथा का समर्थन करते हैं । युवान च्वाग को पाटलिपुत्र के पास छोटी पहाडी के दक्षिण-पश्चिम में पांच स्तूपो के भग्नावशेष देख पडे । इनके पत्र कई मौ कदमो के थे और इनके ऊपर बाद के लोगो ने छोटे-छोटे स्तूप बना दिये थे । इन स्तूपो के सम्वन्ध युवा च्याग दो अनुश्रुतियो का उल्लेख करता है । एक प्राचीन अनुश्रुति के अनुसार प्रशोक द्वारा ८४००० स्तूप वनवाये जाने के बाद बुद्धचिह्न के पाँच भाग बच गये और अशोक ने इन पर पाँच स्तूप बनवाये । दूमरो अनुश्रुति, जिसको युवान च्याग होनयानियो की कहता है, इन पाँचो स्तूप में नदराजा की पाँच निधियों और मात रत्न गडे थे । बहुत दिनो बाद एक अवौद्ध राजा अपनी सेना के माथ श्राया और स्तूपो को खोदकर धन निकाल लेना चाहा। इतने भूकम्प आया, सूर्य वादलों से ढक गया और सिपाही मरकर गिर पडे । इसके बाद किसी ने उन स्नूपो को नही छ्या (वाट, युवान च्चाग, २, पृ० १६-६८ ) । मं पाटलिपुत्र की खुदाई से मात लकडी के बने चबूतरे मौर्य स्तर से निकले है । इनमें हर एक की लम्बाई ३० फुट, चौडाई ५४" और ऊंचाई ४१' है । नवकी बनावट भी प्राय एक मी है । इनके दोनो श्रोर लकडी के खूंटे, जिनके ठूंठ वच गये हैं, लगे थे । चबूतरो के वीच मे भी कुछ लकडी के खम्भे देख पडते हैं, पर इनका चबूतरों से क्या सम्वन्ध था, कहा नही जा सकता (श्रा० स०रि०, वही, पृ० ७३) । स्पूनर का पहले ध्यान था कि शायद चबूतरे भारी खम्भो के सँभालने के लिए वने हो, पर डा० म्यूनर ने इम राय को स्वय ही ठीक नही माना। एक चबूतरे में वनावट कुछ ऐसी थी जिन पर डा० स्पूनर का ध्यान गया। दूसरे चबूतरो की तरह यह चबूतरा पुख्ता नही है और उसके बीच में खडा अर्ध-चन्द्राकार कटाव हैं, जिसमे चबूतरा दो विचित्र भागो में बँट जाता है । इस विभाजित चबूतरे के पश्चिम छोर पर और पाम के चबूतरे के पूर्वी छोर पर जमीन की सतह पर एक ईंट की बनी हुई गोल खात है । इस तरह के नक़ों का कुछ तात्पर्यं तो जरूर था, पर उसका पता नही चलता । डा० म्यूनर की पहली सूझ यह थी कि चबूतरे शायद वेदियो का काम देते थे और वलिकर्म खात में होता था । पर इस मूझ को सहारा देने के लिए साहित्य से उन्हें कोई प्रमाण नही मिला और न वौद्धों के प्रभाव के कारण पाटलिपुत्र में बलिकर्म सम्भव ही था। इस अन्तिम कारण का स्वय उत्तर देते हुए उनका कहना है चबूतरे जो मौर्यकाल की सतह से कई फुट नीचे है शायद स्तम्भ म - मौर्यं ग्रास्थान मडप से पुराने हो, लेकिन इम राय पर भी वे न जम सके (वही, पृ० ७५) । इन लकडी के चबूतरो का ठीक-ठीक तात्पर्य क्या था, यह कहना तो कठिन है, लेकिन यह सम्भव है कि इनका सम्वव नन्दो के स्तूपो से रहा हो। जो हो, इम वात का ठीक-ठीक निपटारा तवतक नही हो सकता जवतक कुम्रहार की खुदाई और भी न बढाई जावे । तित्योगाली में चतुर्मुख कल्को श्रौर पाडिवत् श्राचार्य की ममकालीनता भी ऐतिहासिक दृष्टि से एक विशेष महत्त्व रखती है । हमें इम वात का पता नही कि पाडिवत् श्राचार्य कौन थे, पर इसमें कोई शक नही कि वे अपने काल के एक महान् जैन - प्राचार्य थे और हो सकता है कि पादलिप्ताचार्य, जिनके सम्बन्ध में जैन साहित्य में अनेक
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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