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________________ २०४ प्रेमी-अभिनदन-प्रय (ख) बदत गोरखनाय, जाति मेरी तेली। तेल गोटा पीडि लिया, खलि' दोई मेली ॥ (पृ० ११७) (ग) कैसे वोली पडिता, देव कौने ठाई। निज तत निहारता, अम्हे तुम्हे नाही ॥ (पृ० १३१) (घ) वारह कला रवि पोलह कला ससी। चारि कला गुरुदेव निरतर वसी । (पृ० २४१) वगाल के धर्मदेव-सम्प्रदाय की विचित्र सृष्टि-उत्पत्ति में यह कथन है कि मत्स्येन्द्रनाथ (मीननाथ) चार अन्य सिद्धो के सहित आदि देव या आदिनाथ के गडे हुए मृत गरीर में से उत्पन्न हुए थे। गोरख-बानी में कई जगह मच्छिन्द्र को आदिनाथ (निरजन या धर्म) तया मनसा का पुत्र कहा गया है।' वगाली परम्परा में भी (जैसा कि धर्मसम्प्रदाय की सृष्टि-उत्पत्ति में कथित है) केतका को (जो वाद में 'शिव की पुत्री' तथा 'सो की देवी' कही गई है) प्राविदेवी कहा गया है, तथा वह आदिदेव की पली है। ___बेहुला (विपुला), लखिन्दर (लक्ष्मीधर) तथा देवी नेता (नित्या या नेत्रा) जो त्रिवेणी के घाट पर कपडे पोया करता था-इन सव की कथा का जन्म-स्थान वगाल ही है, जहाँ यह कथा पच्टिम में वनारस तथा सभवत उसके आगे के प्रदेश तक फैली। वगाल के योगियो ने इम कथा के कुछ अग को अपने गुप्त योग को प्रकट करने के स्वरूप में अपना लिया, तथा उनसे भारत के अन्य प्रदेशो के योगियो ने उसे ग्रहण किया। गोरख-बानी के दो या तीन पदो में इस प्राध्यात्मिक कथा की ओर सकेत पाया जाता है। चाद गोटा खुटा करिले, सुरिज फरिल पाटि । अहनिसि घोबी घोव, त्रिवेणी का घाटि ॥ (पृ० १५१) चाद करिल खुटा, सुरजि करिलै पाट । नित उठि घोवी घोवै, त्रिवेणी के घाट ।। (पृ० १५१) झलकत्ता] 'पाठ-भेद-पाल। पाठातर-दोवी। पिता बोलिये निरजन निराकार (पृ० २०२) । 'उदाहरणार्य, 'माता हमारो मनमा बोलिये
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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