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________________ १६२ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ तीतर बटई लवा न बांचे, सारस फूज पुछार जो नाचे। घरे परेवा पड़क हेरी, खेहा गुडरु उसर-बगेरी। ' हारिल चरग चाह बंदि परे, बन कुक्कुट जलकुक्कुट घरे । चकई चकवा और पिदारे, नकटा, लेदी, सोन, सलारे । कठ परी जब छूरी, रकत दुरा हांसु, कित आपन तन पोखा, भखा परावा मांसु । ऊपर के उद्धरण मे जिन चिडियो के नाम पाये है वे हमारे यहाँ के बहुत प्रसिद्ध शिकार के पक्षी है । चूकि भोज राजा की ओर से दिया गया है, इससे जायसी ने ग्रामकुक्कुट की जगह वन-कुक्कुट रक्या है । “आँसु दुरने" का माधुर्य वे ही समझ सकते है जिनका सम्बन्ध अभी देहात से नही छूटा है। "रहिमन असुश्रा नयन ढरि, निज दुख प्रगट करेहि , के "असुआ ढारि" से आँसु ढुरने मे कही ज्यादा मिठास है । आँसू वहने में वह वात कभी आ ही नही सकती। इसके अलावा पद्मावत मे खजन, हस, कौडिया, चकोर, रायमुनी, सचान, भुजेला, महोख, वूमट, सारी (सारिका) और कोकिला आदि पक्षियो का स्थान-स्थान पर बहुत ही स्वाभाविक वर्णन है । मुआ तो पद्मावत का एक मुख्य पात्र ही है। जायसी ने सस्कृत कवियो के हस को सन्देशा ले जाने का काम नही सौपा। हस सुन्दर भले ही हो और उसकी उडान चाहे कितनी ही लम्बी होती हो, लेकिन वह उस सफलता से सन्देशा नही सुना सकता, जिम खूबी से यह काम मनुष्य की वोली की नकल करने वाला तोता कर सकता है। इसीसे जायसी ने हस की जगह तोते को चुना है और उसको उसके लोकप्रचलित नाम 'सुप्रा' अथवा 'परवत्ता' से ही याद किया है। पहाडी तोते के लिए आज भी देहात में 'परबत्ता' शब्द प्रचलित है। फिर पद्मावत के हीरामन तोते का क्या कहना | उसके विना तो यह कथा ही अधूरी रह जाती। जायमी ने उसके लिए चार खड अलग कर दिये है-सुआखड, नागमती सुप्रासवादखड, राजा सुग्रासवादखड और पद्मावती सुआ टखड। इसके अतिरिक्त और कई जगहो पर भी हीरामन का वर्णन करने में जायसी नही चूके। नागमती सुप्रा को अपनी विरह दशा कैसे दीन शब्दो में सुनाती है चकई निस बिछुरै, दिन मिला, हौं दिन राति विरह कोकिला। रैनि अकेलि साथ नहिं सखी, फैसे जिय विछोही पखी। विरह सचान भएउ तन जाडा, जियत खाइ श्री मुए न छांडा। रकत दुरा मासूगरा हाड भएउ सब सख । घनि सारस होइ ररि मुई, पीउ समेटहि पख ॥ यह तो हुआ पद्मावत में वर्णित पक्षियो का एक सक्षिप्त वर्णन मात्र। इस महाकवि की अमरकृति का रसास्वादन करने के लिए उसका कोई प्रामाणिक अनुवाद प्रकाशित होना आवश्यक है। कालाकाकर ] बटई-बटेर । कूज-कुज, क्रौंच, कुलग पक्षी। पुछार-मोर । परेवा कबूतर। पडुकपडकी फाखता। खेहातीतर की जाति का एक पक्षी। उसर-बगेरी=एक भार्दूल जाति का छोटा पक्षी। चरग= चरत, केग्मोर, सोहन चिडिया जाति का मोर से छोटा पक्षी। चाह-चाहा पक्षी। बनकुक्कुट जगली मुरगी। जलकुक्कुट जलमुरगी, टिकरी। पिदारे-पिद्दा । नकटा एक प्रकार की बतख । लेदी-छोटी मुरगावी, एक छोटी बतख । सोन=सवन, बत, कलहस । सलारे मिलरी, या सिलहरी, एक प्रकार की बतख ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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