SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ १५२ सत्यनारायण 'कविरत्न'-जे तजि मातृभूमि सो ममता होत प्रवासी। तिन्हें बिदेसी तग करत है बिपदा खासी। नहि प्राये निर्दय दई. प्राये गौरव जाय । सांप-छछूदर गति भई, मन ही मन अकुलाय । रहे सबके सवै। ('भ्रमर दूत') 'एक भारतीय प्रात्मा' ने भी 'पुष्प की अभिलाषा' कविता मे-'ताटक' और 'वीर' (अर्द्धाश) का सुन्दर सयोग करके नवीन पट्पदी प्रस्तुत की। ऐसी अनेक षट्पदियाँ लिखी, गई है और लिखी जायेगी। गीति-कारो ने तो इस परिपाटी को अपना ही लिया(१) आज इस यौवन के माधवी कुञ्ज में कोकिल बोल रहा! मधु पीकर पागल हुना, करता प्रेम-प्रलाप , शिथिल हुश्रा जाता हृदय जैसे अपने प्राप। लाज के वन्धन खोल रहा? ('चन्द्रगुप्त' 'प्रसाद') जड नीलम शृगो का वितान, मरकत की क्रूर शिला धरती, धेरै पाषाणी परिघि तुझे क्या मृदु तन में कम्पन भरती ? यह जल न सके यह गल न सके, यह मिटकर पग भर चल न सके तू मांग न इनसे पन्थदान ! ('दीपशिखा' महादेवी) 'सूरसागर' के सन पदो मे जितने भी छन्द प्रयुक्त हुए है क्या उनका कभी लेखा-जोखा हुआ है ? क्या हिन्दी के अभिनव शास्त्रकारो के सामने यह महान कार्य नही पडा है ? काव्य के पश्चात् पिंगल शास्त्र की सृष्टि होती है। हिन्दी का पिंगल अभी शपनी कविता से कितना पिछडा हुआ है | क्या उसके छन्दो का एक अद्यवत् वैज्ञानिक और शास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत नही किया जा सकता ? यह एक गम्भीर अनुसन्धान का महत्त्वपूर्ण विषय है। छन्दो के अध्ययन करनेवाले को अवश्य ही कई नये छन्दो के दर्शन होगे और उनका नामकरण हुए विना आगे गति नही होगी। इस लेखक को भी यह करना पड़ा, जिसका परिणाम नीचे प्रस्तुत है । करुणा १४ मात्रामो का छन्द लक्षण-सिद्धि राग यतिमय करुणा । उदाहरण-करुणा कञ्जारण्य रवे! गुण रत्नाकर आदि कवे! कविता-पित ! कृपा-वर दो, भाव-राशि मुझमें भर दो। ('साकेत')
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy