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________________ १३४ प्रेनी-अभिनंदन-प्रच () पचतल्या लघु वाचना के भिन्न-भिन्न नमयो की पद्य-गल्या मे परस्पर भेद कम है, क्योकि इनमें ३१ १६ तापच है। वृवाचना नेतो यह भेद अत्यधिक हो जाता है। इसके समय की पदसल्या क्म-ने-कम १२ और अधिक-ने-अधिक २५५३ है। न्हाकाव्य के लक्षण के अनुसार ऐसा नहीं होना चाहिए। प्रत सम्भव नहीं कि चन्दवरदाई ने स्वय ऐसा किया हो । यह उनके परवर्ती भाटो काही प्रभाव प्रदर्शित करता है। उपरोक्त विचारधारा के आधार पर हम इस निफ्ष पर पहुंचते हैं कि पृथ्वीराजरातो का मूलप बहुत ही बोदाथा, किन्तु कालान्तर में प्रक्षेप मिलने के कारण इसका कलेवर वटता गया। इन्तीप्रक्षेपो के आधार पर ओमा जी जैसे उच्चकोटि के विद्वानो ने रानो को प्रानाणिकता में नन्देह प्रक्ट किया है। रानो को उपलब्ध वाचनाओं में से लघु वाचना शेष दोनों की अपेक्षा अधिक प्रामाणिक तया प्राचीन है। साहौर] 'इस वाचना में कम-से-कम पद्य-सल्या अर्यात् ३१ चतुर्य समय में है और अधिकाधिक अर्थात् १६६ प्रथम समय में है। शेष समयों का परिमाण इन दोनो सत्यानो के बीच है। 'वृहद् वाचना में लघुतम समय ६५वा है, जिसमें केवल १२ पद्य है तया ६१वा (फनवज्ज समय) दोयतम है और इसमें २५५३ पद्य है। 'देखिए । नातिस्वल्पा नातिवीर्घा सर्ना अष्टाधिका इह ॥ साहित्यदर्पण, परिच्छेद ६, श्लोक ३२० ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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