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________________ आयोजना और उसका इतिहास अद्वय नायूराम जो प्रेमी को अभिनदन-प्रय भेंट करने का विचार वास्तव में उस दिन उदय हुआ, जव आदरणीय प० वनारसीदास जो चतुर्वेदी ने श्री रामलोचनशरण विहारी की स्वर्ण-जयती के अवसर पर प्रकाशित और श्री शिवपूजनसहाय जी द्वारा सम्पादित 'जयतो-स्मारक-प्रय' आगरे के 'साहित्य-भण्डार' मे देखा। लौट कर उन्होने वह ग्रय पटने से मंगाया और हम दिखा कर कहा कि ऐसे ग्रथ के अधिकारी प्रेमी जो भी है, जिन्होने हिन्दी को इतनी ठोन सेवा की है और जो विज्ञापन से सदा वचते रहे है। इसके कुछ ही दिन बाद जैन-पत्रो मे समाचार छपा कि जैन-छात्र-सघ (काशी) को ओर से प्रेमी जो को एक अभिनदन-अथ भेंट करने का निश्चय किया गया है । इस पर टोकमगढ के साहित्य-सेवियो की ओर से एक पत्र उक्त सघ को भेजा गया, जिसमे सघ से हम लोगो ने अनुरोध किया कि चूकि प्रेमो जो हिन्दी-जगत की विभूति है, अत यह सम्मान उन्हें समस्त हिन्दी-जगत् की ओर से मिलना चाहिए। इस आशय का एक वक्तव्य हिन्दी के प्रमुख पत्रो में प्रकाशित हुआ। छात्र-सघ ने हमारी वात को स्वीकार कर लिया। अभिनदन के सवध में हिन्दी के विद्वानो की सम्मति ली गई तो सभी ने उसका स्वागत करते हुए अपना सहयोग देने का वचन दिया। कतिपय विद्वानो और साहित्यकारो के उद्गार यहाँ दिये जा रहे है मैथिलीशरण जी गुप्त . "श्री नाथूराम जो प्रेमी के अभिनदन का मै हृदय से समर्थन करता हूँ। वे सर्वथा इसके योग्य है । ऐसे अवसर पर मैं उन्हें सप्रेम प्रणाम करता हूँ।" प० सुन्दरलाल जी : "मेरा हार्दिक आशीर्वाद इस शुभकार्य में आपके साथ है।". ___ डा० सुनीतिकुमार चाटुा. "श्री नाथूराम जी प्रेमी के अभिनदन के लिए जिस प्रबध-सग्रह-अथ के तैयार करने की चेष्टा हो रही है, उसके माथ मेरी पूरी सहानुभूति है।" पं० माखनलाल चतुर्वेदी : "श्रीयुत प्रेमी जो अभिनदन से भी अधिक आदर और स्मरण को वस्तु है। श्रापके इस आयोजन से मै सहमत हूँ। आपने श्रेष्ठतर कार्य किया है।" श्री सियारामशरण गुप्त : "श्री नाथूराम जी प्रेमी को अभिनदन-प्रय अर्पित करने का विचार स्वयं अभिनदनीय है। प्रेमो जो हिन्दी-भाषियो में सुरुचि और ज्ञान के अप्रतिम प्रकाशक है। उनका अध्यवसाय, उनको कर्मनिष्ठा और उनका निरतर आत्मदान अत्यन्त व्यापक है । इसके लिए सारा हिन्दी-समाज उनका ऋणी है। मेरी विनम्र श्रद्धा उनके प्रति सादर समर्पित है।" श्री जैनेंद्रकुमार : "श्रद्धेय प्रेमी जी को अभिनदन-पथ भेट करने के विचार से मेरी हार्दिक सहमति है और मै आपको इसके लिए वधाई देना चाहूँगा।" । श्री व्यौहार राजेन्द्रसिंह : "प्रेमी जी को अभिनदन-अथ भेंट करने की बात सुन्दर है।" डा० रामकुमार वर्मा . "श्रीमान् श्रद्धेय नाथूराम जी प्रेमी को अभिनदन-अथ देने के निश्चय के साथ मेरी पूर्ण सहमति और सद्भावना है । प्रेमो जी ने हिन्दी को जो सेवा की है, वह स्थायी और स्तुत्य है।" श्री देवीदत्त शुक्ल : "श्रीमान् प्रेमी जी का अवश्य अभिनदन होना चाहिए। प्रेमी जी के उपयुक्त ही अभिनदन का समारोह हो। प्रेमी जी के द्वारा हिन्दी के प्रकाशन मे एक नई क्राति हुई है। वे सुरुचि के ज्ञाता साहित्यिक भी है।" श्री गुलाबराय : "हिन्दी के प्रति प्रेमी जो की जो सेवाएं है, वे चिरस्मरणीय रहेंगी। उन्होने व्यक्ति रूप
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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