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________________ gopalbauvenairepavaveDosvapapevotpaapaGwsDespabadastDAGDR0 anwar PORNWOORamnyamwanpeopMORPORARE वर्तमानचतुर्विंशतिजिनस्तुति. केवल दर्शन शुद्ध, वृषभ लक्षन तन सोहै। है : धनुप पांच सौ देह, इन्द्र शतके मन मोहै ।। मरुदेवि मात नंदन सुजिन, तिहूंलोक तारनतरन । मनभाव धारि इक चित्तसों, भन्यजीव वंदत चरन ॥२॥ श्रीअनितजिनस्तुति. मात्रिक कवित्त, जितशत्रूसुत विजयानंदन, गजलच्छन तेरै अभिराम । अष्टमहा मद सब जिनजीते, नगरअजोध्या तज धनधाम।। केवल ज्ञान किये नर केते,पंचमि गति पहुंचे शुभ ठाम । ऐसे अजित नाथ तीर्थकर, तिनको नित कीजे परनाम ॥२॥ श्रीसंभवनिनस्तुति-मात्रिक कवित्त. संभवनाथ सकल सुखदायक, सावस्ती नगरी अवतार। राय जथारथ सेना जननी, केवल दर्शन रूप अपार ॥ हय लच्छनतनस्वामी शोभत,अरि सव जीततरे निरधार। भन्यजीव परणामकरत है, हे प्रभु भवदधिपार उतार ॥३॥ : श्रीअभिनंदनजिनस्तुति. अभिनंदन चंदनसों पूजों, समरस राजाकुल अवतार । नगर अजोध्या जन्म लियो जिन,कपिलच्छन जगमें विस्तार सिद्धारथ माता कुलमंडन, पापविहंडन परम उदार । तातें जगत जीव नित वंदत, भवसागर प्रभुपार उतारा|४|| . श्रीसुमतिनिनस्तुति. सुमति नाथ सुमरे सुखसंपत, दुख दरिद्र दूर सवजाय । नगरसुकोशल जन्मलियो जिन,पिता मेघ अरु मंगला माय॥ वल अनंत भगवंत विराजै, लच्छन कोक नित सेवै पाय । मनवचभाव नित्य भवि वंदै,श्रीजिनचर्णन शीस नवाया। Maren-e/RPowermepRSROOPanacomponr ErowanapanasansorbapraachaaramropanorapataneseRWADNoveraiproonorarmawes
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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