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________________ M - PancandescremRDARSONGandanaananaPos श्रीजिनपूजाटक व फुटकर कविता. जिन पूजाके भेद बहु, यहविधि अष्टप्रकार ॥ प्रतिपूजा जल धारसों, दीजे अर्घ सुधार ॥ १२॥ .. इति श्रीनिनपूनाष्टकं. ___ अथ फुटकर कविता मात्रिक कवित्त. प्रथम अशोक फूलकी वर्षा, वानी खिरहि परम सुख कार। चामर छत्र सिंहासन शोभित, भामंडलघुति दिपै अपार ॥ दुदुभि नाद वजत आकाशहि, तीन भवनमें महिमा सार। है समवशरण जिन देव सेवको, ये उतकृष्ट अष्टप्रतिहार ॥ १३ ॥ सवैया सुन्दरी. काहेको देशदिशांतर धावत, काहे रिझावत इंद नरिंद। काहेको देवि औ देव मनावत, काहेको शीस नवावत चंद ॥ काहेको सूरजसों कर जोरत, काहे निहोरत मूढमुनिंद। काहेकोशोच करै दिनरैन तूं, सेवत क्योंनहि पार्वजिनंद॥१४॥ वीतरागकी स्तुति छप्पय. __ देव एक जिनचंद नाव, त्रिभुवन जस जपै।। देव एक जिनचंद, दरश जिहँ पातक कैपै॥ देव एक जिनचंद, सर्व जीवन सुखदायक। देव एक जिनचंद, प्रगट कहिये शिवनायक ।। देव एक त्रिभुवन मुकुट, तास चरण नित वैदिये। गुण अनंत प्रगटहि तुरत, रिद्धिवृद्धि चिरनंदिये ॥ १५ ॥ . . . कवित्त.. आतमा अनूपम है दीसै राग द्वेष विना, देखो भविजीवो! तुम आपमें निहारकें । कर्मको.न अंश कोऊ भर्मको न वंश को (१) पाखडीतपस्वी. . . . . ...... Monwanapanawaowercepanesawdapiewspaper HaniprasadpanaprasubrahasranamasuvatanARAD/Enabranawranewwesapanapranassasrael NGOSDAMBranapranoveswarasapdoasranapranapussooDanaprasasraepdependea
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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