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________________ Generalapanaparencreeneerendranapandanamanenancharapatrameoparenapapproards PPRPNPPORORSanga®®®MMARY ब्रह्माविलासमें. ऐसे कहियतु, जाके होत होत बहु गुणको निवास है। सम्यक दरस भये ज्ञानहू सम्यक होय, इन्हें आदि और सब सम्यक विलास है ।। ४१॥ संसयविमोहविन्भमविवजियं अप्पपरसरुवस्स गहणं सम्मं णाणं सायारमणेयभेयं तु॥ छप्पय. निजपरवस्तु स्वरूप, ताहि वेदै अरु धार । गुन लच्छन पहिचानि, यथावत अंगीकारे । संशय विभ्रम मोह, ताहि वर्जित निज कहिये। ऐसो सम्यक ज्ञान, भेद जाके बहु लहिये ।। तसपद महिमा अगम अति, वुधिवलको वरनन करे। यह मतिज्ञानादिक बहुत, भेद जासु जिन उच्चरै ॥४२॥ जं सामण्णं गहणं, भावाणं व कटुमाया। अविसेसिदूण अढे, दंसणमिदि भण्णये समये ४३ मात्रिककवित्त. जासु स्वरूप सवै प्रतिभासत, दर्शन ताहि कहै सव कोय। भावऽरु भेद विचार विना जहँ, एकहि वेर विलोकन होय , जानि जु द्रव्य यथावत वेदत, भेद अभेद करै नहिं जोय ॥ गुण देखै विकल्प विनु 'भैया', दरसन भेद कहावे सोय॥४॥ दसणपुव्वं णाणं, छदमत्थाणं ण दुण्णि उवयोगा। जुगवं जमा केवलिणाहे जुगवं तु ते दोवि ॥ (१)'च' ऐसा भी.पाठ है।. TopRORE/APP/RSBAPPAMOROAR BorenovarnaNewstartenairewangandusvietis
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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