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________________ rwwwwwww MandvadirannivanivionmarAINMENTARVAnisters Forseenemaanawanensionweppenpanwarsing ...................... . य ह पयडिहिदिअणुभागप्पदेसभेदा दु चदुविधो बंधो॥ जोगा पयडिपदेसा, ठिदि अणुभागा कसायदोहोति ॥३३॥ है द्रव्यवंध भेद चारि प्रकृति ओ स्थितिबंध, अनुभागवंध परदेश बंधमानिये। प्रकृति प्रदेशवंध दोऊमनवचकाय, के संयोगसेती होहै हि ऐसे उर आनिये ॥ थिति बंध अनुभाग होंय ये कपायसेती, समुच्च समस्या एती समुझि प्रमानिये ।ऐसे वंधविधि कही ग्रंथनके । अनुसार सर्वगविचार सरवन भये जानिये ॥ ३३ ॥ ६ चंदणपरिणामो जो, कम्मस्सासवणिरोहणे हेऊ ॥ सो भावसंवरो ग्वल, दव्यासवरोहणो अण्णो ॥ ३४ ॥ कर्मनिके आस्रव निरोधिवेक भाव भये, तेई परिणाम भावसे संवर कहीजिये । द्रव्यानव रोकिवको कारण सु जेजे होंय, ते ते ए सर्व भेदद्रव्य संवर लहीजिये । याहीविधि भेद दोय कहे जिन-1 देव सोय, द्रव्यभाव उभं होय 'भैया' यों गहीजिये । संवरके आवत ही आस्रव न आवे कई, ऐसे भेद पाय परभाव त्याग दीजियं ॥ ३४॥ वदसमिदी गुत्तीओ, धम्माणुपेहापरीसहजओ य॥ है चारित्तं बहु भेया, णायब्वा भावसंवरविसेसा ॥ ३५ ॥ __अहिंसादि पंच महाव्रत पंचसमितिसु, मनवचकाय तीन गुपति प्रमानिये । धरम प्रकार दश बारह सुभावनाजु, वाईस परीसह को जीतियो सुजानिये ॥ बहुभेद चारितके कहत न आवै। पार, अति ही अपार गुण लच्छन पिछानिये । एते सब भेद भाव 1संवरके जानियेजु, समुच्चहि नाम कहे 'भैया' उर आनिये ॥३५॥ जहकालेण तवेण य, भुत्तरसं कम्मपुग्गलं जेण ॥ भावेण सडदिया,तस्सडणंचेदिणिजरा दुविहा॥३६॥ remGARIVAROREneppearendranapDvOADGORIES Ravraandsor0000000000000psapanapranandpapamrapapcommonsor-son-cor-DIR NVARurantarvaviv y a
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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