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________________ Preranaortoor0000uppotoadmarocon Genreseasesentereraren araberawatan PEOPowerPORPOROSORPORROPERPRPORDER ...... द्रव्यसंग्रह. ४३३ प्रति, कह्यो कायधर सदा जाके सवभेश है। देखिये जु नैननिसों । पुग्गलके पुंज सबै, यहै लोक माहिं एक सासुतो नरेश है ॥२६॥ जावदियं आयासं, अविभागी पुग्गलाणुवठ्ठद्धं । तं खुपदेसं जाणे, सव्वाणुष्ठाणदाणरिहं ॥२७॥ जितनों आकाश पुग्गलाणु एक रोकि रह्यो, तितने अकाश को प्रदेश एक कहिये । शुद्ध अविभागी जाके एकके न होय है दोय, ऐसे परमाणुके अनेक भेद लहिये ॥ अनंत परमाणूको योग्य ठौर देवेको जु, . ऐसोही अकाशको प्रदेश एक गहिये। जामें और द्रव्य सव प्रगट विराज रहे, कोऊ काहू मिलै नाहि ऐसो सरदहिये ॥२७॥ 1 इति श्रीपद्रव्यपश्चास्तिकायप्रतिपादनामा प्रथमोऽधिकार ॥१॥ आसववधंणसंवरणिज्जरमोक्खा सपुण्णपावा जे॥ है जीवाजीवविसेसा, तेवि समासेण पभणामो ॥२८॥ चौपाई १५ मात्रा. ॐ आस्रव सँवर बंधको खंध, निर्जर मोक्ष पुण्यको बंध। पापऽरु जीव अजीव सु भेव, इते पदार्थ कहों संखेव॥२८॥ आसवदि जेण कम्मं, परिणामेणप्पणो स विण्णेओ॥ भावासवो जिणुत्तो, कम्मासवणं परो होदि ॥ २९॥ दुर्मिल छंद ( सवैया ) ३२ मात्रा. जिह आतमके परिणामनिसों, निजकर्महि आस्रव मान लये। है तिहँ भावनको यह नाम लियो, भावानव चेतनके जु भये॥ है दरवाश्रव पुद्गलको अयवो, करमादि अनेकन भांति ठये। । में इमभावनिको करता भयो चेतन, दर्वित आस्रवताहित ये ॥२९॥ (१) संक्षेपसे। o menapamoooooooooooooo SroppamopanRRRROPARDAPOPERIOROPOPers
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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