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________________ ouM MM .. .. ~ ~ Mmmon HERevenomenowservanversaweTNDramadwwwANNOVAawanRRBroweANDANBARE PEPARWEARopaapanSANJARPAPr opeopaper ........शतमष्टोचरी. कोटि उपाय करो कोउ भेदसों, क्षीर गहै जल नेकु न पीत । तैसे सम्यकवंत गहै गुण, घट घट मध्य एक नयनीत ॥ ९२ ॥ सिद्ध, समान चिदानंद जानिके, थापत है घटके उरबीच ।। है वाके गुण सब बाहि लगावत, और गुणहि सब जानत कीच ॥ ज्ञान अनंत विचारत अंतर, राखत है जियके उर सींच । ऐसें समकित शुद्ध करत है, तिनत होवत मोक्ष नगीच ॥१३॥ कवित्त. । निशदिन ध्यान करो निशचं सुज्ञान करो,कर्मको निदान करो 1 आवै नाहि फेरिकें । मिथ्यामति नाश करो सम्यक उजास करो, धर्मको प्रकाश करो शुद्धदृष्टि हेरिक ॥ ब्रह्मको विलास करो, आतमनिवास करो, देव सव दास करो महामोह जेरिक। अनुभौ । 2 अभ्यास करो थिरतामें वास करो, मोक्षसुख रासकरो कहूं, तोहि टेरिक ।। ९४ ॥ जिनके सुदृष्टि जागी परगुणके में त्यागी, चेतनसो लवलागी भागी भ्रांति भारी है । पंचमहाव्रतधारी जिन आज्ञाके विहारी, है नग्नमुद्राके अकारी धर्महितकारी है । प्राशुक अहारी अट्ठाईस मूल गुणधारी,परीसह सहें भारी परउपकारी है।पर्मधर्म धनधारी सत्य शब्दके उचारी, ऐसे मुनिराज ताहि वंदना हमारी है ९५॥ शुभ ओ अशुभ कर्म दोऊ सम जानत है, चेतनकी धारामें ६ अखंड गुण साजे है ।जीवद्रव्य न्यारो लखै न्यारेलख आठों कर्म जप "" "" " "" "" पूरवीक बंधते मलीन केई ताजे हैं। स्वसंवेग ज्ञानके प्रवानत अवाधिवेदि ध्यानकी विशुद्धतासों चढ़ केई बाजे हैं। अंतरकी दृष्टि Represemapraonlovemaprebaoesaprocereap/RDAToupremurrespoooooooooooooooo (१) पीता है. (२) भयः PRAKANPURepom/ARODAVARRIORPRODUIDADE
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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