SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ Ue do up as was up to je de Jo da ब्रह्मविलास में कवित्त. Daching अरे नर मूरख तू भामनीसों कहा भूल्यो, विपकीसी वेल काह दगाको बनाई है । सेवत ही याहि नैकु पावत अनेक दुःख, सुखहूकी बात कहूं सुपनै न आई हैं ॥ रसके कियेसा रसरोगको रसंस होइ, प्रीतिके कियेसों प्रीति नरककी पाई है । यह शुभ्र सागर में डूविवेकी ठौर 'भैया', यामें कछु धोखा खाय रामकीदुहाई है ॥ ७९ ॥ मात्रिक कवित्त. चंद्रमुखी मन धारत है जिय, अंतसमें तोकों दुखदाई | चार गतिमें यही फिरावत, तासों तुम फिर प्रीति लगाई ॥ बार अनंती नरकहिं डारिके, छेदन भेदन दुःख सहाई । सुबुधि कहै सुनि चेतनप्रानी, सम्यक शुद्ध गहौ अधिकाई ॥८०॥ सवैया.. रे मन मूढ विचारि करो, तिथके संग वात सवै विरंगी । ए मन ज्ञान सुध्यान धरो, जिनके संग बात सबै सुधरैगी ॥ धू गुण आपु विलक्ष गहो पुनि, आपुहितै परतीति टरैगी । सिद्ध भये ते यही करनी कर, ऐसें किये शिव नारि वरैगी ॥८१॥ सोरठा. एहो चेतनराय, परसों प्रीति कहा करी । जे नरकहिं ले जाहिं, तिनहीसों राचे सदा ॥ ८२ ॥ मात्रिक कवित्त. वेतन नींद बडी तुम लीनी, ऐसी नींद लेय नहिं कोय । काल अनादि भये तोहि सेवत, विनजागे समकित क्यों होय ॥ ॐॐॐॐ daget seda Gadge BANVANGERA Gobjects of G
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy