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________________ ROOPOORDPRPREPOPopnepaROCODENDRAPARICE ब्रह्मविलासमें Erandovancorpornp/o0/08/0pm00GOOGopeopoonacooooooool प्रश्नोत्तर. षट दर्शनों को शिरै? कहा धर्मको मूल? ॥ मिथ्यातीके है कहा? 'जैन' कह्यो सु कबूल ॥ ३१॥ वीतराग कीन्हों कहा ? को चन्दा की सैन ? ॥ घामद्वार को रहत हैं ? 'तारे' सुन शिख वैन ॥ ३२ ॥ धर्म पन्थ कोनें कह्यो ? कौन तरै संसार ॥ कहो रंकवल्लभ कहा? 'गुरु' वोले वच सार ॥ ३३ ॥ कहो स्वामि को देव है? को कोकिल सम काग? ॥ को न नेह सज्जन करै? सुनहु शिष्य विनराग ॥ ३४॥ गुरु सङ्गति कहा पाइये? किहि विन भूलै भर्म कहो जीव काहे मयी? 'ज्ञान' कह्यो गुरु मर्म • जिन पूर्जे ते हैं किसे? किहते जगमें मान! ॥ पंचमहाव्रत जे धरै, 'धन' बोले गुरु ज्ञान ॥ ३६॥ है छिन छिन छीजै देह नर, कित है रहो अचेत ॥ तेरे शिर पर अरि चढ्यो, काल दमामों देत ॥ ३७॥ जो जन परसों हित कर, निज सुधि सबै विसार । सो चिन्तामणि रत्न सम, गयो जन्म नर हार ।। ३८॥ जैसे प्रगट पतङ्के, दीप माहिं परकाश ॥ 8 (३१) छहों दर्शनमें जैनदर्शन श्रेष्ठ है, धर्मोंका मूल जैन है, मि थ्यातीके जैन अर्थात् नै (विनय ) नहीं होती. SupprentiranapanasanaprasanapanslamvasanawanapasapanasansoonGanwa (१) घर. (२) गरीवका बलम अर्थात् प्यारा गुरु (भारी) पदार्थ होता है. (३) जो कोयल विना राग ( मोटी आवाज) कीहो वह काग समान ही है. (४) जो जिन भगवानकी पूजा करते हैं वे धन अर्थात् धन्य हैं. (५) सूर्य. hwomenomwwWAROOPERPROPERARY
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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