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________________ . .. ..-- - . HARIRAMMAnwawenwRBomww wmore, फुटकर कविता. २७७३ जहाँ जपहिं नवकार, तहाँ सुख संपति होई । जहाँ जपहिं नवकार, तहाँ दुख रहै न कोई ॥ नवकार जपत नव निधि मिलै, सुख समूह आवै सरव । सो महा मंत्र शुभ ध्यानसों, भैया' नित जपवो करव ॥ १७॥ दोहा. सीमंधर स्वामी प्रमुख, वर्तमान जिनदेव ॥ मन वच शीस नवायके, कीजे तिनकी सेव ॥१८॥ महिमा केवल ज्ञानकी, जानत है श्रुतज्ञान ॥ तात दुहु बरावरी, भापे श्री भगवान ॥१९॥ जितनो केवल ज्ञान है, तितनो है श्रुतज्ञान ॥ नाव भिन्न यातें कह्यो, कर्म पटल दरम्यान ॥२०॥ विन कपायके त्यागते, सुख नहिं पावै जीव ॥ ऐसे श्री जिनवर कही, वानी माहिं सदीव ॥ २१ ॥ जो.कुदेवमें देव बुधि, देव विष बुधि आन ॥ जो इन भावन परिणवै, सो मिथ्या सरधान ॥ २२ ॥ जैसे पटको पेखनो, तैसो यह संसार ॥ आय दिखाई देत है, जात न लागै वार ॥२३॥ त्याग विना तिरवो नहीं, देखहु हिये विचार ॥ तूंची लेपहिं त्यागती, तव तर पहुंचे पार ॥२४॥ त्याग बडो संसारमें, पहुँचावै शिवलोक ॥ त्यांगहित सव पाइये, सुख अनंतके थोक ॥ २५ ॥ ' सुगुरु कहत है शिष्यको, आपहि आप निहार ॥ भले रहे तुम भूलिकें, आपहि आप विसार ॥ २६ ॥ (१) बीचमें. २ पटवीजना. (खद्योत) HowanRanwonwepwapepepeopoG000000ROS foransaiNaDiamonevanvBARDanuwanaprasanapeDiegavar RaprapoDapoordaroupmspropenepanacrosprouproposalese
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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