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________________ Raniin BatmenveAVAARORAGARI0RRANGPOpawanapapos स्वायत्तीसी. mannaamaarwww मोह नींदमें जीवको, बीत गयो चिरकाल ॥ जाग न कवह आपकी, कीन्ही सुध संभाल ॥२॥ जानत है सब जगतमें, यह तन रहवो नाहिं ॥ पोपत है किहँ भावसों, मोह गहलता माहि ॥३॥ मेरे मीत नचीत तू, है वैठ्यो किह ठौर ॥ आज काल जम लेत है, तोहि सुपन भ्रम और ॥ ४॥ देखत देखत आंखसों, यह तन विनस्यो जाय ॥ एतेपर थिर मानिये, यहो मूढ शिरराय ॥ ५॥ जो प्रभातको देखिये, सो संध्याको नाहिं ॥ ताहि सांच कर मानिये, भ्रम अरु कहा कहाहि ॥६॥ ज्यों सुपनेमें देखिये, त्यों देखत परतच्छ । सर्व विनाशी वस्तु है, जात छिनकमें गच्छ ॥ ७ ॥ सुपनेमें भ्रम देखिये, जागत हू भ्रम मूल ॥ ताहि सांच शठ मानके, रह्यो जगतमें फूल ॥८॥ सुपनेमें अरु जागते, फेर कहा है वीर ॥ वाहमें भ्रम भूल है, वाहूमें भ्रम भीर ॥ ९ ॥ • सुपनेवत संसार है, मूढ़ न जाने भेव ॥ आठ पहर · अज्ञानमें, मग्न रहैं अहमेव ॥१०॥ सुपनेसों कहै झूठ है, जाग कहै निजगेह ॥ ते मूरख संसारम, लहै न भवको छेह ॥११॥ कहा सुपनमें सांच है ? कहा जगतमें सांच? ॥ भूल मूढ थिरमानके, नाचत डोलै नाच ॥ १२॥ है आँख मूंद खोलै कहा, जागत कोऊ नाहिं ॥ सोवत सब संसार है, मोह गहलता माहिं ॥१३॥ ()चली. RanwerPAWARAPOORSPOpponweppp/nepal venavinvenvantpawanp/enter apps/9DONGSapeopGDAGDraatvasaapanaapasapna v antIAANTVermacamareADEAw
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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