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________________ rammar-. Kargeorepoornap Rabitrenawwanapranawrsapanasonawrenawanevaasaniveop isprenewenoenpreewanganawRORPIRPORROR. शतअष्टोत्तरी. भारी है, महाब्रह्मचारी है जुसाथी नाहिं जरको ॥ आप महाते-६ जवंत गुणको न ओर अंत, जाकी महिमा अनंत दूजो नाहि । वरको । चेतनाके रस भरे चेतन प्रदेश धरे, चेतनाके । सिद्ध पटतरको ॥ ५७ ॥ , कर्मको करैया यह भरमको भरैया यह, धर्मको धरैया यहै है शिवपुर राव है। सुख समझेया यह दुख भुगतैया यहै, भूलको है है भुलैया यहै चेतना स्वभाव है॥ चिरको फिरैया यह भिन्नको । है रहया यहै, सबको लखैया यहै याको भलो चाव है। राग द्वेषको । । हरैया महामोखको करैया, यहै शुद्ध 'भैया' एक आतम है स्वभाव है ॥५८॥ उर्दूभापामें कवित्त. मान यार ! मेरा कहादिलकी चशम खोल, साहिब नजदीक है। १ तिसको पहचानिये । नाहक फिरहु नाहिं गाफिल जहान बीचि । शुकन गोश जिनका भलीभांति जानिये ॥ पावक ज्यों वसता है । है अरनी पखानमाहि, तीसरोस चिदानंद इसहीमें मानिये । पंजसे । गनीम तेरी उमरसाथ लगे हैं खिलाफ तिसें जानि तूं आप सच्चा आनिये ॥ ५९॥ है अवै भरमके त्योरसों देख क्या भूलता, देखि तु आपमें जिन आपने वताया है। अंतरकी दृष्टि खोलि चिदानंद पाइयेगा, बाहि-६ रकी दृष्टिसों पौद्गलीक छाया है । गनीमनके भाव सब जुदे करि है देखि तू, आगें जिन ढूंढा तिन इसीभांति पाया है । वे ऐब साहिव विराजता है दिलबीच, सच्चा जिसका दिल है तिसीके दिल आया है ।। ६०॥ लकड़ी. honapanparacenawaranepapaperwepepepeppaper o rnoapooroscomp00/map/aopanasonapropanoos andiaRam00ranavrenb/ -
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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